इंदौर में प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार को शराब कारोबारियों के 18 ठिकानों पर एक साथ छापे मारे

इंदौर / भोपाल

मध्यप्रदेश में 71 करोड़ रुपये के आबकारी फर्जी बैंक चालान घोटाले की जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आज सुबह बड़ी कार्रवाई की। ED की 18 टीमों ने इंदौर, भोपाल और जबलपुर में आबकारी अधिकारियों और ठेकेदारों के ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। सूत्रों के मुताबिक, इस घोटाले की राशि 72 से 100 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है।

यह घोटाला शराब कारोबारियों और आबकारी अधिकारियों के गठजोड़ से फर्जी चालानों के जरिए किया गया। शिकायतकर्ता राजेंद्र गुप्ता ने ईडू को साक्ष्य और बयान दिए। 6 मई को ईडी ने प्राथमिकी दर्ज की और आबकारी आयुक्त से 5 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। हालांकि भेजी गई जानकारी को ED ने अधूरी बताकर दोबारा पूरी जानकारी मांगी।

इंदौर जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय में साल 2015 से 2018 के बीच सरकारी गोदाम से शराब लेने के लिए इस्तेमाल हुए 194 बैंक चालानों में गड़बड़ी सामने आई थी, जिसमें हजारों के बैंक चालानों को लाखों रुपए का बनाकर गोदामों से उतनी शराब उठाकर ठेकेदारों ने अपनी सरकारी शराब दुकान से बेच दी थी।

इसी मामले में ईडी को शिकायत की गई थी, जिसके बाद ईडी ने इस मामले की जांच 2024 में शुरू कर दी थी।

इनके ठिकानों पर पड़े छापे

शराब ठेकेदार एमजी रोड समूह के अविनाश और विजय श्रीवास्तव, जीपीओ चौराहा समूह के राकेश जायसवाल, तोपखाना समूह के योगेंद्र जायसवाल, बायपास चौराहा देवगुराड़िया समूह राहुल चौकसे, गवली पलासिया समूह सूर्यप्रकाश अरोरा, गोपाल शिवहरे, लवकुश और प्रदीप जायसवाल के ठिकानों पर छापे पड़े हैं।

ईडी ने 2024 में लिखा पत्र इस मामले में इंदौर के रावजी पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर 172/2017 दर्ज की गई थी। ईडी ने आबकारी विभाग द्वारा की गई आंतरिक जांच के आधार पर दर्ज प्राथमिकी के संबंध में विवरण उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने का अनुरोध किया है। इस पत्र में लिखा गया है कि शराब ठेकेदारों से वसूली गई राशि, यदि कोई हो तो उसका विवरण उपलब्ध कराएं।

इसके अलावा शराब ठेकेदारों के बैंक खाते का विवरण भी उपलब्ध कराने और जांच की वर्तमान स्थिति की जानकारी देने को कहा है, जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके अलावा, उत्पाद शुल्क विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध अगर कोई जांच हुई है, तो उसकी आंतरिक जांच रिपोर्ट भी उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है।

इस मामले में यह हुई थी कार्रवाई जिला आबकारी कार्यालय इंदौर सहित अन्य जिला आबकारी कार्यालयों में सामने आए इस 42 करोड़ के घोटाले को लेकर 12 अगस्त 2017 को रावजी बाजार पुलिस ने ठेकेदारों सहित 14 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी की धाराओं में केस दर्ज किया था।

आरोप है कि आबकारी विभाग में इसके पहले तीन साल से फर्जी चालान जमा किए जा रहे थे। आबकारी विभाग के अफसरों को हर 15 दिन में चालान को क्रॉस चेक करना (तौजी मिलान) होना था, लेकिन उन्होंने तीन साल तक ऐसा नहीं किया।

इसकी वजह से उनकी साठगांठ साफ नजर आ रही थी। जिस वक्त यह शराब घोटाला हुआ था, उस वक्त जिला आबकारी कार्यालय में जिला आबकारी अधिकारी के पद पर संजीव दुबे नियुक्त थे। यही वजह रही कि आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त संजीव कुमार दुबे सहित छह अफसरों को निलंबित कर दिया था।

निलंबित अधिकारियों में लसूड़िया आबकारी वेयरहाउस के प्रभारी डीएस सिसोदिया, महू वेयर हाउस के प्रभारी सुखनंदन पाठक, सब इंस्पेक्टर कौशल्या सबवानी, हेड क्लर्क धनराज सिंह परमार और अनमोल गुप्ता के नाम भी शामिल हैं। इसके अलावा 20 अन्य अधिकारियों के तबादले भी किए थे, जिनमें उपायुक्त विनोद रघुवंशी का नाम भी शामिल था।

चालानों की जांच के बाद भी नतीजा शून्य शराब घोटाले कि जांच में 11 ऑडिटरों ने एक-एक चालान की जांच की थी। घोटाले के समय से पहले के तीन सालों में इंदौर में शराब दुकानें 2015 में 556 करोड़ में, 2016 में 609 करोड़ में और 2017 में 683 करोड़ में नीलाम हुई थीं। इस तरह 1700 करोड़ के शराब के चालानों की जांच की गई, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा।

इन लोगों को बनाया गया था आरोपी शराब ठेकेदार एमजी रोड समूह के अविनाश और विजय श्रीवास्तव, जीपीओ चौराहा समूह के राकेश जायसवाल, तोप खाना समूह योगेंद्र जायसवाल, बायपास चौराहा देवगुराड़िया समूह राहुल चौकसे, गवली पलासिया समूह सूर्यप्रकाश अरोरा, गोपाल शिवहरे, लवकुश और प्रदीप जायसवाल।

क्या है मामला

जांच में सामने आया कि शराब कारोबारियों ने बैंक में मात्र 10 हजार रुपये जमा कराए और षड्यंत्रपूर्वक चालानों में इसे 10 लाख रुपये दिखाकर वेयरहाउस से देसी व विदेशी शराब उठा ली। इस गड़बड़ी से कारोबारियों को भारी मुनाफा हुआ, जबकि सरकार को 1% इनकम टैक्स और 8% परिवहन शुल्क का करीब 97.97 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कुल 194 फर्जी चालानों के जरिए यह घोटाला अंजाम दिया गया। आबकारी आयुक्त की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे बड़ी गड़बड़ी 2015 से 2018 के बीच इंदौर जिले में हुई। जांच में सामने आया कि इंदौर में कूटरचित चालानों के जरिए शासन को 42 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया गया।

इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस घोटाले में आबकारी अधिकारियों की ठेकेदारों के साथ संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, सरकार ने आईएएस स्नेहलता श्रीवास्तव की अध्यक्षता में एक विभागीय जांच समिति भी बनाई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की थी। अब इस मामले में आज ED की टीम ने इंदौर के साथ-साथ भोपाल और जबलपुर में भी आरोपियों के ठिकानों पर रेड की है।

India Edge News Desk

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