प्रदूषित कान्ह नदी का पानी उज्जैन आकर मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में मिल रहा

उज्जैन
 प्रदूषित कान्ह नदी का पानी उज्जैन आकर मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में मिल रहा है। फिलहाल ये मिलन रोकने को कोई प्रबंध नहीं है। वर्ष 2016 में 95 करोड़ रुपये खर्च कर एक प्रबंध किया था मगर वो सफल न हो सका।

नतीजतन, अब 919 करोड़ रुपये की दूसरी योजना पर काम चल रहा है जो 2027 में पूरी होगी। यानी तब तक शिप्रा में गंदा पानी मिलता रहेगा। मालूम हो कि देश के सबसे स्वच्छ पड़ोसी शहर इंदौर का सीवेज युक्त पानी कान्ह नदी के रूप में उज्जैन आकर शिप्रा नदी में मिलता है।

95 करोड़ रुपये हुए थे खर्च

इससे शिप्रा का स्वच्छ जल भी प्रदूषित होता है। ये मिलन रोकने को प्रदेश सरकार ने वर्ष 2016 में 95 करोड़ रुपये खर्च कर कान्ह का रास्ता पाइपलाइन के माध्यम से बदलने का काम किया था। योजना स्वरूप नहान क्षेत्र (त्रिवेणी घाट से कालियादेह महल तक) को स्वच्छ रखने के लिए पिपल्याराघौ से कालियादेह महल के आगे तक भूमिगत पाइपलाइन बिछाई थी।

योजना को बनाते समय दूरदर्शी दृष्टिकोण न अपनाया और नतीजा ये निकला कि परियोजना पूरी होने के बाद भी शिप्रा के नहान क्षेत्र में भी प्रदूषित पानी नहीं मिलता रहा और अब भी मिल रहा है। इधर, उज्जैन शहर में 438 करोड़ रुपये की भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन परियोजना का काम भी समय-सीमा गुजरने के पांच साल बाद भी अधूरा है।

जन भावनाओं और स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर

इन सब स्थितियों का असर जन भावना और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बहरहाल, अब 919 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना का काम शुरू कराया है। योजना अंतर्गत त्रिवेणी घाट के समीप जमालपुरा गांव में स्टापडैम बनाकर कान्ह का पानी रोका जाएगा।

यहां से कान्ह का पानी 30.15 किलोमीटर दूर गंभीर नदी पर बने बांध के डाउन स्ट्रीम क्षेत्र के सिंगवाड़ा गांव में प्रवाहित गंभीर नदी में छोड़ा जाएगा। इसके लिए 12 किलोमीटर हिस्से में 5.30 मीटर व्यास की टनल बनाई जाएगी।

योजना पूरी होने पर गंभीर में मिलेगा कान्ह का पानी

18.5 मीटर लंबी डी आकर की आरसीसी बाक्सनुमा पाइपलाइन बिछाई जाएगी। प्रारंभिक और अंतिम छोर पर 140-140 मीटर की ओपन चैनल बनाई जाएगी। योजना के पूरा होने पर कान्ह का पानी गंभीर नदी में आकर मिलेगा।

यह पानी सिंगवाड़ा से असलोदा, तुम्बावड़ा, सुर्जखेड़ी, गुधा, रूपाखेड़ी, कनार्वद, सर्वाना उन्हेल होकर बरखेड़ा मदन गांव में मेलेश्वर महादेव मंदिर के समीप शिप्रा नदी में जाकर मिलेगा। परियोजना, का निर्माण वर्ष 2052 के समय की इंदौर, सांवेर की आबादी और 40 क्यूमेक जल उद्वदित क्षमता को ध्यान में रखकर किया है। ये महाकुंभ सिंहस्थ 2028 और उसके बाद के सिंहस्थ में बहुत उपयोगी साबित होगी।

शिप्रा नदी शुद्ध नहीं हो सकी

शिप्रा नदी को स्वच्छ एवं प्रवाहमान बनाने के लिए बीते एक दशक में प्रदेश सरकार एक हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है, बावजूद शिप्रा नदी शुद्ध न हो सकी है। अगले तीन वर्ष में दो हजार करोड़ रुपये और खर्च करने की तैयारी है। दावा है कि ये काम होने पर शिप्रा में सीधे नालों का पानी मिलना बंद हो जाएगा और शिप्रा में वर्षभर शिप्रा का ही जल भरा रहा।

India Edge News Desk

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