एक बार फिर ध्वस्त हुए राहुल गांधी के नैरेटिव

नीरज मनजीत

सच कहा जाए तो महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश एक बार फिर राहुल गांधी और कांग्रेस के असत्य भाष्य, जिसे सियासी बोली में “फेक नैरेटिव” कहा जा रहा है, की पराजय हुई है। इन चुनावों में राहुल और कांग्रेस के तीनों नैरेटिव फेल हुए हैं, जिन्हें उनका इको सिस्टम भाजपा की हिंदुत्ववादी कार्यशैली के विरुद्ध प्रभावी रणनीति बता रहा था। राहुल गांधी पिछले नौ-दस महीनों से अपनी हर सार्वजनिक उपस्थिति में संविधान की किताब उठाकर जनता से कह रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस संविधान को मिटा देना चाहते हैं और वे तथा कांग्रेस संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पहले हरियाणा में और अब झारखंड, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के इस भाष्य को मानने से इंकार कर दिया है।

हमारे पाठक पूछ सकते हैं कि झारखंड को हम इस फेहरिस्त में क्यों शामिल कर रहे हैं, वहाँ तो भारतीय जनता पार्टी की बड़ी पराजय हुई है? हाँ, यह सही है, मगर झारखंड में हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन के पक्ष में चल रही सहानुभूति की प्रचंड लहर की जीत हुई है, झारखंड मुक्ति मोर्चा की जीत हुई है। ईडी और सीबीआई के छापों के बाद हेमंत सोरेन को जेल में रहना पड़ा था। उनकी ग़ैरमौजूदगी में कल्पना सोरेन ने मजबूती से सोरेन की विरासत को संभाला था। चुनाव प्रचार में हेमंत और कल्पना की जुगलबंदी ने झारखंड के आदिवासी इलाकों में अच्छा प्रभाव छोड़ा था। झारखंड की जनता पर राहुल गांधी के संविधान बचाओ के नैरेटिव अथवा “राग अडानी” के घिसे हुए रेकॉर्ड का कोई असर नहीं पड़ा है। कांग्रेस की उपस्थिति यहाँ जूनियर पार्टनर के तौर पर है।

राहुल गांधी दूसरा नैरेटिव खड़ा कर रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी दलितों पिछड़ों का आरक्षण ख़त्म करना चाहती है। यह नैरेटिव राहुल गांधी का सबसे बड़ा असत्य भाष्य था। दरअसल आम चुनाव में भाजपा के दो-एक बड़बोले नेताओं के बयानों को आधार बनाकर योजनबद्ध रूप से ऐसी अफ़वाहें उड़ाई गई थीं। उस वक़्त पीएम मोदी ने जनसभाओं में इन अफ़वाहों का खंडन किया था, पर तब तक देर हो चुकी थी और उत्तर प्रदेश के दलितों पिछड़ों का एक तबका इन अफ़वाहों को सच मान चुका था। उत्तर प्रदेश में भाजपा को इसका सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था। इस बार यहाँ की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने सात सीटें जीतकर इस नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया है।

मुरादाबाद जिले की कुंदरकी विधानसभा में भाजपा को सबसे बड़ी जीत हासिल हुई है। यहाँ से भाजपा के राजवीर सिंह ने सपा के हाजी रिजवान को एक लाख चवालीस हजार से ज़्यादा वोटों से हराकर समीक्षकों को अचरज में डाल दिया है। दरअसल इस विधानसभा में 60 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है। इसके बावजूद सपा प्रत्याशी यहाँ से अपनी ज़मानत भी नहीं बचा सके हैं। ज़ाहिर है कि राजवीर सिंह को यहाँ मुस्लिम मतदाताओं के काफी वोट मिले हैं। कुंदरकी सीट का नतीजा देखकर अच्छा इसलिए भी लग रहा है, क्योंकि यहाँ का मुस्लिम समुदाय न तो समाजवादी पार्टी के असत्य में फंसा और न ही मौलानाओं के बहकावे में आया। बेहतर तो यह होगा कि देश भर के मुस्लिम समुदाय को कुंदरकी के परिणाम को एक मॉडल के तौर पर लेना चाहिए और देश की एकत, अखंडता के पक्ष में वोटिंग करना चाहिए।

राहुल गांधी और कांग्रेस का तीसरा असत्य भाष्य था जातीय जनगणना का नैरेटिव। यह नैरेटिव भी कांग्रेस ने लोकसभा के चुनावों के बाद खड़ा किया है। देश में जातीय जनगणना का इरादा बहुत ही अच्छा विचार है। आरएसएस ने भी अपने राष्ट्रीय सम्मेलन में इस विचार की सराहना की है। दरअसल इस विचार के पीछे मंतव्य यह होना चाहिए कि दलितों पिछड़ों वंचित जनों को उनका हक़ मिले और वे देश की मुख्यधारा में शामिल होकर देश का विकास कर सकें। मगर इस विचार के पीछे राहुल गांधी और कांग्रेस का मंतव्य साफ़ नहीं था। वे जातीय जनगणना के नैरेटिव को हिंदुत्व की काट के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे।

राहुल जगह-जगह बड़े ही आक्रामक अंदाज़ में जातीय जनगणना की बात कर रहे थे। क्या इससे ऐसा शक होना गैरवाजिब नहीं था कि उनका असली इरादा बहुसंख्यक समुदाय को विभाजित करना था, न कि पिछड़ी जातियों को न्याय देना? यदि न्याय देना ही इरादा होता तो वे 2004 से 2014 के बीच ऐसा कर सकते थे, जब केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। चलिए वे उस वक़्त ऐसा नहीं कर पाए, तो वे अभी वहाँ जातीय जनगणना करा सकते हैं, जहाँ इंडी गठबंधन की सरकार है। सच कहा जाए तो राहुल के इन तीनों नैरेटिव्स को लेकर इंडी गठबंधन के उनके साथी कतई आश्वस्त नहीं थे। पिछले दस महीनों से सिर्फ़ राहुल और खड़गे ही इन्हें लेकर जनता के बीच जा रहे थे। इंडी गठबंधन के बाक़ी नेता स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे थे।

राहुल गांधी पिछले कई वर्षों से यह कह रहे हैं कि भाजपा और आरएसएस से उनकी लड़ाई दो विचारधाराओं की लड़ाई है। उनके इस नैरेटिव का भी विश्लेषण किया जाना चाहिए। भाजपा और पीएम मोदी एक निश्चित और स्पष्ट विचार लेकर देश को आगे ले जाना चाहते हैं। वे 2047 के विकसित भारत की बात कर रहे हैं। वे बहुसंख्यक समुदाय को एकजुट रखकर राष्ट्रवादी विचारधारा के जरिए देशवासियों के अंदर देश के प्रति प्रेम की भावना और दायित्व बोध विकसित करना चाहते हैं, जो आज के भारत की सबसे बड़ी जरूरत है। मुस्लिम समुदाय को भारतीय जनता पार्टी केवल वोट बैंक नहीं मानती, बल्कि भारत का जिम्मेदार नागरिक मानती है। मोदी चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय देश के बहुसंख्यक समुदाय के साथ कदम से कदम मिलाकर वैश्विक बिरादरी में एक मिसाल पेश करे।

महाराष्ट्र विजय के बाद भाजपा के दफ़्तर में शनिवार को मोदी ने केवल एक वाक्य में भाजपा की विचारधारा को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया कि–“हम यहाँ केवल सरकार बनाने के लिए नहीं हैं, वरन हम देश को बनाने और आगे बढ़ाने के लिए यहाँ हैं।” इधर राहुल और कांग्रेस की विचारधारा में तुष्टीकरण की भयावह राजनीति है, बहुसंख्यक समुदाय को उपेक्षित, विभाजित करके सत्ता हासिल करने की ख्वाहिशें हैं। क्या हम सदी के पहले दशक को भूल सकते हैं, जब शहर दर शहर बम विस्फोट हो रहे थे? उस वक़्त पूरे देश में असुरक्षा का माहौल था, निर्दोष मजलूम लोगों की जानें जा रही थीं। सच कहा जाए तो आज राहुल गांधी और कांग्रेस के पास ऐसा कोई ब्लू प्रिंट नहीं है, देश का बहुसंख्यक समुदाय आश्वस्त हो सके कि देश सही हाथों में है। जहाँ तक देश के अल्पसंख्यक समुदाय के एकमुश्त समर्थन का सवाल है, वह विवशता और असुरक्षा की वजह से कांग्रेस के साथ है।

महाराष्ट्र में बहुसंख्यक समुदाय की एकजुटता

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के नतीजों ने एक बार फिर साबित किया है कि देश की बहुसंख्यक जनता भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के एजेंडे पर एकजुट होकर साथ खड़ी है। हरियाणा की तरह महाराष्ट्र और यूपी के उपचुनाव के परिणाम भी भारतीय राजनीति के हालिया इतिहास का एक अहम पड़ाव साबित होंगे। इन परिणामों ने भारतीय राजनीति की भावी दिशा तय कर दी है। महाराष्ट्र में जो चुनाव लड़ा गया, उसमें लोक कल्याण के वादे तो काम कर ही रहे थे, साथ ही धार्मिक आधार पर भी जमकर तीखी लड़ाई लड़ी गई। भारतीय जनता पार्टी की ओर से मोदी, योगी के सीधी चोट करनेवाले स्पष्ट नारे थे। इधर इंडी गठबंधन के पक्ष में बहुत से मौलाना साफ तौर पर वोट ज़िहाद की अपील कर रहे थे। ऐसा देखकर साधु संतों ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मोर्चा संभाल लिया। यह एक अच्छा संकेत है। महाराष्ट्र की प्रचंड जीत के बाद यह साफ हो गया है कि जनता ने उद्धव ठाकरे की हिंदुत्व से कथित सेक्युलर की ओर विचलन की सियासत को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है। कांग्रेस और एनसीपी को भी यहाँ बहुत बड़ी हार मिली है। इन नतीजों के बाद इंडी गठबंधन में राहुल गांधी का प्रभाव निश्चित रूप से कम होगा। इंडी गठबंधन में बिखराव भी दिखाई पड़ सकता है।

रायपुर दक्षिण में दिखा बृजमोहन का प्रभाव

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तीन सीटों पर उपचुनाव थे। रायपुर दक्षिण से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी की जीत तय थी। उत्सुकता केवल इस बात की थी कि वोटों का अंतर कितना होगा। उन्होंने कांग्रेस के युवा प्रत्याशी आकाश शर्मा को 46 हजार से ज़्यादा वोटों से हराया। इसे एक बड़ी जीत कहा जा सकता है, मगर इसी सीट पर बृजमोहन अग्रवाल 67 हजार वोटों से जीते थे। लोकसभा चुनाव में बृजमोहन की लीड बढ़कर 89 हजार के समीप पहुँच गई थी। कहा जा सकता है कि दस प्रतिशत कम मतदान होने की वजह से सुनील की लीड थोड़ी कम रही। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की पारंपरिक सीट बुधनी में भाजपा के रमाकांत भार्गव ने कांग्रेस के राजकुमार पटेल को सिर्फ 13 हजार वोटों से हराया, जबकि शिवराज सिंह यहाँ से एक लाख से ज़्यादा मतों से जीते थे। दूसरी सीट विजयपुर में कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने भाजपा के रामनिवास रावत को हराया है। रामनिवास भाजपा सरकार में वनमंत्री हैं। ज़ाहिर है कि ये नतीजे पार्टी और मुख्यमंत्री मोहन यादव के अनुकूल नहीं कहे जा सकते। निश्चय ही विजयपुर की जीत से कांग्रेस के मनोबल में वृद्धि होगी।

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