किस मर्ज की दवा हुए ये आयोग?

सी के रहमानी
चुनाव आयोग के अलावा भी हमारे देश में कई स्थायी आयोग हैं और समयकृसमय पर जरूरत के मुताबिक सरकार अलग से भी आयोग बनाती रहती है। इनमें स्थाई रूप से महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, मानवाधिकार आयोग, पुलिस सुधार आयोग, जनजातीय आयोग जैसे अनेक आयोग हैं जिन पर सरकार लाखों करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन उनकी सिफारिशों पर अमल नहीं करती। जब अमल ही नहीं करती तो फिर ये आयोग किस मर्ज की दवा हुए।
इस बात से किसी को इनकार नहीं कि कोई भी आयोग कड़ी मेहनत और बारीकी से और हर पहलू की तथ्यों पर आधारित बारीकी से जांच कर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है लेकिन जब उसे लागू करने की बात आती है तो सरकार नफा नुकसान का गणित लगाने लगती है। उसे लागू करने में फायदा दिखाई नहीं देता तो उसे लागू ही नहीं करती और रिपोर्ट धूल फांकती रहती है।
मुसलमानों की समस्याओं पर सच्चर कमेटी बनी जिसने बारीकी से जांच पड़ताल कर इस समुदाय की समस्याओं के समाधान के लिए तमाम सुझाए लेकिन क्या वे लागू हुए? इसी तरह मुम्बई दंगों पर श्रीकृष्ण आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी और चुन चुनकर दोषी लोगों को चिन्हित किया लेकिन वह रिपोर्ट आज तक धूल फांक रही है। उस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। महिला आयोग हो या कोई अन्य, उसके पास न्यायिक अधिकार ही नहीं तो वह क्या कार्रवाई करेंगे। ये आयोग चिल्ला सकते हैं लेकिन कार्रवाई करना या न करना सरकार या कोर्ट के पास ही है।
दरअसल आयोग ‘बिजूका’ की तरह हैं तो जो लोगों को भ्रमित करते हैं। जिस तरह किसी खेत में पशु पक्षियों को भ्रमित करने के लिए खेतों में ‘बिजूका’ लगा दिया जाता है, उसी तरह आयोग हैं जो लोगों को बहका कर झूठी तसल्ली देते हैं। आयोग बिना दांत के शेर हैं जो गुर्रा तो सकते हैं लेकिन उनके पास काटने के लिए ‘दांत’ (शक्ति) नहीं हैं।
अगर चुनाव आयोग द्वारा सिर्फ एक बार बकवास करने या आचार संहिता का उल्लंघन करने पर एक दो नेताओं को एक दो साल की सजा हो जाए या उन पर कम से कम एक साल तक चुनाव लडऩे पर रोक लग जाय, तब देखना कौन आचार संहिता का उल्लंघन करता है। यानी तत्काल सजा मिले तो उसका असर दूरगामी पड़ेगा।
इसी तरह महिला आयोग या अल्पसंख्यक जैसे किसी आयोग की सिफारिश पर इसी तरह की कड़ी कारवाई हो जाए तो फिर देखना लोग कैसे डरेंगे आयोगों से। क्या यह आरोप सही नहीं है कि सरकार किसी को बचाने के लिए आयोग का सहारा लेती है या फिर लोगों का ध्यान किसी घटना से हटाने के लिए आयोग बनाती है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर सरकार आयोगों को दोषी को दंडित करने का अधिकार दे।