छोटी काशी भी कहा जाता था शेखावाटी को
इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
शेखावाटी क्षेत्र में सीकर जिले का एक ऎसा छोटा-सा नगर है जो अपनी समृद्धि और वैभव के लिए प्रसिद्ध है।
सीकर मुख्यालय से रामगढ़ 78 किलोमीटर तथा जयपुर से 190 किलोमीटर की दूरी पर है। सड़क मार्ग से जाते हुए रास्ते में पड़ने वाले छोटे-छोटे गांवों और रामगढ़ के आसपास मौजूद रेतीले मैदानों को रूक कर देखने का अलग ही आनंद है। रामगढ़ शेखावाटी को सीकर के शासक देवी सिंह ने 18वीं सदी के आखिरी बरसों में कुछ धनी सेठों को रामगढ़ में बसाया था तथा भारत के बसे हुए समृद्ध नगरों में रामगढ़ की गिनती होती थी। पहले इस जगह को रामगढ़ सेठान भी कहा जाता था। यहां के सेठों की रईसी और उदारता के कई किस्से स्थानीय लोगों के जुबान पर आज भी मिल जाएंगे।
किसी समय यह जगह ज्ञान व विद्या का केन्द्र भी था क्योंकि यहां 25 संस्कृत विद्यालयों के अलावा आयुर्वेद व ज्योतिष विद्यालय भी थे। राजस्थान में जयपुर के अतिरिक्त सिर्फ रामगढ़ में ही महाविद्यालय था, इसीलिए इसे दूसरा काशी या छोटी काशी भी कहा जाता था।
रामगढ़ में पोद्धार परिवार की छतरियों का एक समूह है जिनका शिल्प पूरे शेखावाटी क्षेत्र में सबसे उन्नत माना जाता है। इसी जगह जगदीश जी महाराज का एक मंदिर भी है। इन छतरियों के शिल्प के साथ-साथ इन पर की गई रंगीन चित्रकारी (फ्रेस्कों पेंटिंग्स) को दो सौ से भी अधिक वर्षों बाद चमकते हुए देखना आश्चर्य में डालता है। इन्हीं छतरियों के पिछली तरफ पोद्धार परिवार के पुरोहितों की छतरी भी है जो बताती हैं कि धनवान सेठ किस तरह से अपने पुजारियों-पुरोहितों का सम्मान किया करते थे। यहां से बिल्कुल करीब ही सेठ रामगोपाल पोद्धार की छतरी है जिसकी अंदरूनी छत पर राम और कृष्ण के जीवन के प्रसंगों के साथ-साथ संगीत से जुड़े भित्ति चित्र भी उकेरे गए है। लगभग 500 चित्रों को यहां देखा जा सकता है जो किसी भी अन्य छतरी में नहीं है, स्थानीय लोग इसे रामायण छतरी भी कहते है। इनके अतिरिक्त यहां रामेश्वर लाल की छतरी, खेमका छतरी, कनोरिया छतरी इत्यादि है। शेखावाटी की हवेलियों और मंदिरों की स्थापत्य कला इसलिए भी हैरान करती है कि सदियों पहले बनी होने के बावजूद भी ये आज भी अपने स्थापत्य कला की बेजोड पहचान के लिए अपना सिर ताने खड़ी है।
रामगढ़ की प्रमुख हवेलियों में सांवलका हवेली, रूईया-हवेली, लाड़िया हवेली, वेदाण्य हवेली, ताराचंद जौहरी हवेली,सर्राफ हवेली आदि प्रमुख है। फतेहपुर गेट के पास स्थित बंद पड़ी सावलका हवेली की विशालता देख कर अचरज होता है तो वहीं छोटी सी वेदारण्य हवेली सलीके से संजो कर रखे गए अपने पुराने सज्जोसामान से हैरान करती है।
रामगढ़ के प्रमुख मंदिरों में पोद्धार छतरी समूह में जगदीश जी का मंदिर, रामायण छतरी के निचले हिस्से में शिव मंदिर, नटवर निकेतन मंदिर, लाल कुआं मंदिर, बद्रीनारायण मंदिर, कृष्ण मंदिर, शनि मंदिर आदि है।
रामगढ़ कस्बे को पूरी तरह से देखने के लिए पूरा दिन भी कम पड़ता है। सुरेखा धर्मशाला, रूइया धर्मशाला, सिंहानिया धर्मशालाओं को देखकर पता चलता है कि उस जमाने के अमीर सेठ लोगों के भले के लिए किस तरह से दरियादिली दिखाते थे। रामगढ़ में कहीं-कहीं चार-चार मीनारे भी बनी हुई है। बताया जाता है कि ये दरअसल कुएं है जिन्हें पानी की कमी वाले इस क्षेत्र में सेठों द्वारा बनाया जाता था। पोद्धार कुआं, जीवनराम का कुआं, खारिया कुआं, कृष्ण गौशाला का कुआं, रामगोपाल का कुआं जैसे इन कुओं में भी अतीत की झलक देखी जा सकती हैं। इनके अलावा यहां सेठ रामचन्द्र का जोहड़ा (तालाब), अनंतराम का जोहड़ा और जौहरी की बावड़ी भी है जिन्हें बरसाती पानी इकट्टा करने के मकसद से बनाया गया था।
शेखावाटी में दाल-बाटी, चूरमा , बाजारे की रोटी, कैर सांगरी की सब्जी, गटटे की सब्जी, कढी, लाल मांस, छाछ, राबड़ी जैसे यहां के व्यंजन खाने-पीने के शौकीनों को दीवाना सा बना देते है। यदि आप कुछ यहां से खरीदना चाहें तो लाख से बनी चूड़ियां, कंगन, लकड़ी का सामान, हाथ की कारीगरी वाले कपड़े, इत्यादि यहां से यादगार के तौर पर खरीद सकते है।