कलियुग में भी अनुकरणीय माना जाता है सीता का चरित्र

डॉ० घनश्याम बादल
विश्व भर में मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाने वाले श्रीराम की अर्धांगिनी वह मिथिलाधिपति जनक राज की सर्वप्रिया पुत्री सीता का जन्म वैशाख शुक्लपक्ष की नवमी को होना माना जाता है। रामकथाओं का वर्णन करने वाले विभिन्न ग्रंथों के अनुसार वें मिथिलापति राजा जनक की पत्नी महारानी सुनैना की कोख से जन्मीं हैं तो दूसरे ग्रंथ उन्हे लक्ष्मी की पूर्ण अवतार व जगद्जननी मानते हैं ।
सीता को भूमि से उत्पन्न होने के कारण भूमिपुत्री तो राम की पत्नी होने से रामप्रिया का नाम मिला।उन्हें जनकसुता, वैदेही एवं जानकी जैसे नामों से भी जाना जाता है। द्वापर एवं त्रेता में ही नहींअपितु कलियुग में भी सीता का चरित्र अनुकरणीय माना जाता है । वें एक पतिव्रता आदर्श पत्नी रहीं जो राजवैभव एवं समस्त सुखों का परित्याग कर अपने पति श्रीराम के साथ वन गईं ।
देखते हैं उनके विविध रूप ।
अनुपम व अनुकरणीय : रामायण में एक से बढ़कर एक पात्र हैं पुरुष पात्रों में यदि राम एक मर्यादाशील आदर्श पात्र हैं तो स्त्री पात्रों में सीता के चरित्र के आगे दूसरे पात्रों की आभा फीकी पड़ जाती है । इस अद्भुत ग्रन्थ में राम के साथ सीता की चमक के आगे बाकी पात्रों की चमक ऐसी धुंधली पड़ जाती है जैसे सूर्य का उदय होने पर चंद्रमा व तारे कांतिहीन हो जाते हैं । जहां तक स्त्री पात्रों का प्रश्न है सीता का चरित्र अनुपम व अनुकरणीय है भले ही उनके जन्म की असलियत के बारे में बहुत ही कम लोग जान पाए हैं ।
एक सीता, अनेक मिथक : वाल्मीकि रामायण के पाठक जानते हैं कि सीता लक्ष्मी की अवतार वैदेही राजा जनक की पुत्री व राम की पत्नी थी । पर, कंब रामायण व विभिन्न क्षेपकों के अनुसार सीता के मंदोदरी व रावण की जैविक पुत्री होने की दंतकथाएं भी प्रचलन में हैं। इन दंत कथाओं से प्राप्त जानकारी के अनुसार रावण को वेदवती नाम की अप्सरा के साथ बलपूर्वक विवाह करने के प्रयास के फलस्वरूप उसे वेदवती के आत्मदाह से पूर्व दिये गये शाप के कारण त्यागना पड़ा था ।
क्षेपकों के अनुसार वेदवती भगवान विष्णु को प्रसन्न करने की इव्छा के साथ तपश्चर्या में लीन थी , तप के प्रभाव से उसका रूप लावण्य इतना बढ़ गया कि रावण खुद को रोक नहीं पाया और उससे बलपूर्वक विवाह करने लगा जबकि वेदवती रावण के सौतेले भाई धन के देवता कुबेर के पुत्र से विवाह करना चाहती थी। उसने रावण को यह भी बताया कि वह तो उसके लिये पुत्री के समान है पर रावण नहीं माना तब क्षुब्ध होकर व वेदवती ने अपने तप के प्रभाव से अग्नि पैदा कर स्वयं ही अग्नि प्रवेश कर लिया व मरने से पूर्व रावण को शाप दिया कि वह अगले जन्म में उसकी पुत्री के रूप में पैदा होगी व उसके नाश का कारण बनेगी ।
रावण की मृत्यु का कारण : मान्यता है कि जब वेदवती अगले जन्म में सीता के रूप में पैदा हुई तो त्रिकालदर्शी रावण को ज्ञात हो गया एवं उसने नवजात शिशु की हत्या का दायित्व एक राक्षस को देिया । वह राक्षस लंका राज्य के अपशकुन के डर से इस चांदनी के समान श्वेत वर्ण की बच्ची को लेकर मिथिला नगरी में गया लेकिन शिशु सीता को देखकर वह उस पर इतना मुग्ध हो गया कि उसकी हत्या नहीं कर पाया और उसने उसे मिथिला के एक खेत में जमीन के नीचे दबा दिया। शाप के अनुसार अंततः सीता रावण की मृत्यु का कारण बनीं ।
अपूर्व सुंदरी : वाल्मीकि रामायण व महाकवि कम्ब की रामायण तथा अन्य स्रोतों से पता चलता है कि सीता न केवल अपूर्व सुंदरी थी अपितु वही विष्णु प्रिया लक्ष्मी का अवतार थी जो भगवान विष्णु को नारद ऋषि से मिले शाप के फलस्वरूप त्रेता में राम के साथ मानव योनि से पैदा हुई, तथा उसी शाप के चलते राम को पत्नी विरह का दारुण दुःख झेलना पड़़ा। सीता के वन में राम के साथ जाने के बाद भी वें पति पत्नी होने का सुख नहीं पा सके थे।
स्वर्ण मृग और सीता : यह जानकर आश्चर्य होता है कि इतनी विदुषी होने के बाद भी सीता कैसे मारीच के स्वर्ण मृग होने के जाल में फॅंस गई व उन्होने राम व लक्ष्मण को जिद करके अपने से दूर भेज कर रावण द्वारा अपहरण का कार्य सरल कर दिया । इस बारे में यही कहा जा सकता है ‘राम की लीला राम ही जाने और न जाने कोय’। शायद रावण वध के लिए ही राम व सीता के रूप में विष्णुजी एवं लक्ष्मी ने यह लीला रची होगी तभी तो रावण जैसा विद्वान भी वही करता चला गया जो रामजी चाहते थे ।
आदर्श की प्रतीक : सीता न केवल आदर्श पत्नी थी वरन एक आदर्श बेटी, भाभी, पुत्रवधु व रानी भी थी । राजकीय गरिमा में वें अद्वितीय सिद्ध हुई तो अपने सतीत्व की रक्षा में दृढ़व्रती । हिन्दू धर्म के मिथकों में उल्लिखित पंच कन्याओं में सीता – तारा, द्रौपदी , मंदोदरी व अहिल्या में एक थी । सीता का पूरा ही जीवन कर्तव्य निर्वहण में बीता । पहले वें राम के साथ पत्नी धर्म को निबाहने के लिए वन गईं तो बाद में राम को मर्यादापुरुषोत्तम बनाने के लिए उन्होने अग्नि परीक्षा दी, उसमे खरी उतरने के बावजूद राम द्वारा परित्याग करने को बिना किसी प्रतिवाद के स्वीकार किया ।
स्नेहिल मां : सीता ने वाल्मीकी के आश्रम में न केवल लव तथा कुश जैसे पुत्रों को जन्म दिया बल्कि उन्हे आज्ञाकारी व योग्य भी बनाया । जब लव व कुश युद्ध में राम के सामने आकर खड़े हा गए तब एक बार फिर से सीता ने ही पिता पुत्रों के बीच सेतु बन कर युद्ध रोककर अपने पत्नी व मां के धर्म का बखूबी पालन किया । मगर जब राम से मिलन की बेला फिर से पास आई तो सीता ने स्वेच्छा से पृथ्वी की गोद में समाना ज्यादा श्रेयकर समझा तब राम भी सीता को बार – बार कष्ट देने की ग्लानि नहीं सह पाए और उन्होंने भी जल समाधि ले ली ।