जाने कच्चातिवु द्वीप के भारत से श्रीलंका के हाथ जाने की पूरी कहानी, 163 एकड़ एरिया में फैला निर्जन द्वीप

नई दिल्ली

कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे पर केंद्र सरकार पीछे हटने के मूड में नहीं है। पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बाद आज विदेश मंत्री जयशंकर ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे को उठाया। जयशंकर ने कहा कि 1974 में, भारत और श्रीलंका ने एक समझौता किया जहां उन्होंने एक समुद्री सीमा खींची, और समुद्री सीमा खींचने में कछतीवू को सीमा के श्रीलंका की ओर रखा गया था। जयशंकर यहीं नहीं रुके। उन्होंने तमिलनाडु सरकार डीएमके पर भी हमला बोला। विदेश मंत्री ने कहा कि कांग्रेस और DMK ने इस मामले को इस तरह से लिया है मानो इस पर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है।

कच्चातिवु द्वीप पर बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस
विदेश मंत्री एस जयशंकर के पहले खुद पीएम मोदी भी कच्चातिवु पर निशाना साध चुके हैं। जयशंकर की आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यत: कांग्रेस निशाने पर रही। जयशंकर ने 1974 में हुए उस समझौते की बात दोहराते हुए कहा कि उस साल भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ था। दोनों देशों ने उसपर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद कांग्रेस की तब की सरकार ने एक समुद्री सीमा खींची और समुद्री सीमा खींचने में कच्चातिवु को सीमा के श्रीलंकाई पक्ष पर रखा गया। जयशंकर ने आगे कहा कि हम जानते हैं कि यह किसने किया, यह नहीं पता कि इसे किसने छुपाया। हमारा मानना है कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि यह स्थिति कैसे उत्पन्न हुई।

 

मैंने 21 बार इस मुद्दे पर अपना जवाब दिया है: जयशंकर
जयशंकर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पिछले 20 वर्षों में, 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है और इसी समयकाल में 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका ने जब्त किया। पिछले पांच वर्षों में कच्चातिवु मुद्दा और मछुआरे का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है। यह संसद के सवालों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मुझे कई बार पत्र लिखा है और मेरा रिकॉर्ड बताता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री को मैं इस मुद्दे पर 21 बार जवाब दे चुका हूं। यह एक जीवंत मुद्दा है जिस पर संसद और तमिलनाडु हलकों में बहुत बहस हुई है। यह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच पत्राचार का विषय रहा है।

जयशंकर ने बताई 1974 में हुए उस समझौते की कहानी
जयशंकर ने कहा कि दो साल से भी कम वक्त में फिर एक और समझौता हुआ भारत और श्रीलंका के बीच में। इस समझौते में कहा गया कि दोनों देशों के लिए एक्सक्लूसिव इकॉनमिक जोन बनाने से भारत और श्रीलंका का उसके ईईजेड में लिविंग और नॉन लिविंग रिसोर्स पर एक्सक्लूसिव अधिकार होगा। साथ ही यह भी कि भारत के मछुवारे और फिशिंग बोट श्रीलंका के टेरिटोरियल वॉटर में और उनके एक्क्लूसिव इकॉनमिक जोन में नहीं जाएंगे। जयशंकर ने कहा कि 1974 में आश्वासन दिया गया और फिर 1976 में अग्रीमेंट किया गया जिसमें यह आश्वासन तोड़ दिया गया।

एस जयशंकर ने कहा कि 2006 में संसद में उस वक्त के मंत्री ई.अहमद ने जवाब दिया कि 1974 का अग्रीमेंट जिसमें भारत और श्रीलंका की समुद्री सीमा तय की गई और इस मुद्दे पर 1976 में जो लेटर एक्सचेंज किया गया, उसमें कहा गया कि भारत के मछुवारे और फिशिंग बोट श्रीलंका के वॉटर और ईईजेड में नहीं जाएंगे। जयशंकर ने कहा कि सरकार ने लगातार यह पोजिशन ली। इसका असर यह हुआ कि पिछले 20 साल में 6184 भारतीय मछुवारों को श्रीलंका ने डिटेन किया। साथ ही 1175 भारतीय फिशिंग बोट को भी सीज किया गया।

जब बॉर्डर का विवाद होता है तो कानूनी राय ली जाती है…
आरटीआई से मिली जानकारी का जिक्र करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत ने कच्चातिबु पर अपना दावा किया कि यहां लगातार भारतीय मछुवारे जाते रहे हैं। कोई ऐसा डॉक्यूमेंट नहीं है जो दिखाए कि यह श्रीलंका के पास था। श्रीलंका दावा करता है कि उनका दावा सही है। भारत और श्रीलंका जब आजाद हुए तो यह मुद्दा मिलिट्री का भी बना कि इस आइलैंड को कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। 1960 के दशक में यह मुद्दा उठा, तब इसे लेकर कई डिस्कस हुए। 1974 में अग्रीमेंट से पहले श्रीलंका के प्रधानमंत्री भारत की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से मिलने आए थे।

उन्होंने कहा कि जब भी बॉर्डर का विवाद होता है तो कानूनी राय ली जाती है। कानूनी राय उस वक्त भी ली गई अटॉर्नी जनरल से। अटॉर्नी जनरल और विदेश मंत्रालय के लीगल डिपार्टमेंट ने उस वक्त भी अपनी राय में कहा कि कच्चातिबु भारत का है और अगर भारत का दावा पूरा पुख्ता नहीं भी दिखता है तो कम से कम भारत के मछुवारों का वहां आने जाने और फिशिंग का अधिकार भारत को लेना ही चाहिए। जयशंकर ने कहा कि वहां भारत के अधिकार इसलिए चले गए क्योंकि उस वक्त की केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार ने इसकी परवाह नहीं की।

मोदी के भी निशाने पर डीएमके और कांग्रेस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कच्चातिवु पर बोलते हुए कांग्रेस और डीएमके पर हमला बोला। पीएम मोदी ने कहा कि बयानबाजी के अलावा, द्रमुक ने तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया है। कच्चातिवु पर उभरते नए विवरणों ने डीएमके के दोहरे मानकों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। कांग्रेस और डीएमके पारिवारिक इकाइयां हैं। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि उनके अपने बेटे और बेटियां बढ़ें। उन्हें किसी और की परवाह नहीं है। कच्चातीवु पर उनकी कठोरता ने हमारे गरीब मछुआरों और विशेष रूप से मछुआरों के हितों को नुकसान पहुंचाया है।

 

मोदी ने हमारे सहयोगी टीओई के खबर का हवाला देकर कहाआंखें खोलना और चौंका देने वाला! नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने लापरवाही से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इसने हर भारतीय को नाराज कर दिया है और लोगों के मन में फिर से पुष्टि की है किहम कभी भी कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना 75 वर्षों तक काम करने और गिनती करने का कांग्रेस का तरीका रहा है।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button