आजादी का अमृत महोत्सव पर सामने आयी सत्ता की संवेदनहीनता : ओपी यादव

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
रायबरेली | समाजवादी पार्टी के प्रान्तीय नेता दादा ओपी यादव ने कहा कि जहाँ एक ओर पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सत्ता की संवेदनहीनता भी सामने आयी है। राजस्थान के जालौर में एक सवर्ण अध्यापक की मटकी से पानी लेने पर एक 8 वर्षीय दलित बच्चे की हत्या कर दी जाती है, यह घटना उन लोगों के लिए आईना है जो इक्कीसवीं सदी में विश्व गुरू होने का सपना देख रहे हैं। छत्तीसगढ़ में जलौनी की लकड़ी बिना इजाजत लेने पर वन अधिकारियों द्वारा मजदूरों को गोली मार दी जाती है और चैन सिंह नामक मजदूर की हत्या हो जाती है। बिहार के सीवान जिले में आर्थिक तंगी से मजबूर माँ अपने मासूम बच्चे को 15 हजार में बेंच देती है। उ0प्र0 के हाथरस में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद हत्या करके जला दिया जाता है। लखीमपुर के किसानों पर केन्द्रीय मंत्री के इशारे पर उनके परिजनों द्वारा गाड़ी चढ़ाकर किसानों की हत्या कर दी जाती है। आजादी के 75 वर्ष बाद तिरंगा फहराने के नियमों में सरकार द्वारा संशोधन किया गया। नियमानुसार 17 अगस्त को शाम सूर्यास्त के समय तिरंगा उतारना था, लेकिन अधिकांश तिरंगे उतारे नहीं गये हैं, जिसकी वजह से तिरंगा व देश दोनों का अपमान हो रहा है, इसके लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार है। भारत सरकार, सी.बी.आई., ई.डी., आई.टी. का दुरूप्रयोग कर विपक्षियांे पर झूठे मुकदमें दायर कर जेल भेजा जा रहा है। उ0प्र0 में कानून का नहीं बुलडोजर का शासन चल रहा है। जरूरत है कि देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए राजनीति के संकीर्ण दायरे से ऊपर उठा जाय। आज हालत यह है कि जम्मू कश्मीर में टारगेट किलिंग जारी है। निर्दोष लागू मारे जा रहे हैं, सभी प्रकार के मामलों में गड़बड़ी करने वालों पर मामला दर्ज कर जेल भेज देना समस्या का असल समाधान नहीं है, जब तक पूंजीवादी हाथों में खेल रही सरकारें मुफलिसी बेरोजगारी के पैदा हुए हालातों पर ईमानदारी से विचार नहीं करेगी, तब तक आजादी की हीरक जयन्ती मनाने का कोई औचित्य नहीं है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि आजादी की रोशनी, गरीब की झोपड़ी तक पहुँचनी चाहिए वहीं मौजूदा सत्ताधारी राजनैतिक दल के आदर्श पुरूष दीनदयाल उपाध्याय ने भी कहा था कि समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक साधन सुविधा पहुँचाना होगा, अन्तोदय और एकात्म मानवतावाद का वैचारिक लक्ष्य इन हालातों से कैसे साकार होगा, इस पर विचार करना ही आजादी के पर्व को मनाने का वास्तविक संकल्प होगा, वरना आप राजपथ और लाल किले को रोशनी की जगमगाहट से कितना भी सजाइये, कितनी भी तिरंगा यात्राएँ निकालिए समाज के अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के जीवन में जब तक बदलाव का सवेरा नहीं आयेगा, ये जश्न सिर्फ दिखावा अथवा राजनैतिक वोट बैंक को बढ़ाने के लिए मददगार साबित हो सकता है, लेकिन भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी के दावानल में झुलसती एक बड़ी आबादी के लिए आजादी की वास्तविक खुशी नहीं बन पायेगा, इसके लिए आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार सरकारी योजनाओं में पसरे भ्रष्टाचार का निवारण कर सरकारी योजनाओं का लाभ वंचित वर्ग तक पहुँचाना चाहिए। हर गाँव, कस्बे, शहर में पनपे राजनैतिक संरक्षण प्राप्त, दबंगों, गुण्डों, माफियाओं के भी नकेल डालकर सबको सस्ती शिक्षा स्वास्थ और समयबद्ध न्याय सुलभ कराना होगा। तभी आजादी का हीरक जयन्ती मनाना सार्थक होगा।