पथराव की भाषा घृणा को जन्म देती हैं

नरेंद्र तिवारी ‘पत्रकार’

इस बार देश में रामनवमी पर हिन्दू समाज विशेष उत्साहित नजर आ रहा था। जिसके बहुत से कारणों में एक श्रीराम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया का आरम्भ हो जाना भी है। इसी उत्साह में शहर-शहर शोभायात्राएं निकाली गई। इन शोभायात्राओं पर मध्यप्रदेश, गुजरात, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल सहित देश मे अनेकों स्थानों पर उपद्रवियों ने पथराव किया ओर साम्प्रदायिक तनाव का माहौल निर्मित हो गया। इस उपद्रव ने एमपी के खरगोन को गहरे जख्म दिए है। यहां बरसों का भाईचारा सन्देह की निगाहों से देखा जाने लगा है। इस प्रेम और भाईचारें को कायम करने में लम्बा समय लगेगा। खरगोन की हिंसा में पथराव के साथ पेट्रोल बम, पिस्टल ओर धारदार हथियारों का उपयोग किया गया। इन उपद्रवियों ने हिंसा की सारी सीमाएं लांघते हुए खरगोन जिला पुलिस अधीक्षक पर भी पिस्टल से फॉयर किया जिससे उनके पैर में चोट पहुचीं हैं। महिलाओं को प्रताड़ित किया छोटे बच्चों तक पर आक्रमण किये है। पथराव की घटना बड़वानी जिले की सेंधवा तहसील में भी घटित हुई जहां ग्राम बड़गांव से सेंधवा शोभायात्रा में शामिल होने आ रहे ग्रामीणों पर वर्ग विशेष के लोगो द्वारा पथराव कर दिया गया। जिसमें सेंधवा शहर थाना प्रभारी सहित 5 लोग घायल हो गए। इन घटनाओं के बाद शहर में तेजी से तनाव फैलने लगा खासतौर पर खरगोन में साम्प्रदायिक तनाव फैल गया। हिंसा तोड़फोड़ के वीडियो दिल दहला देने वाले है। दंगों में प्रयुक्त साधनों से यह साफ नजर आता है कि यह दंगा सुनियोजित है। खरगोन ओर सेंधवा में इन घटनाकर्मो के बाद उपद्रवियों के अवैध निर्माणों को तोड़ने की कार्यवाहीं की गई जिसमें सेंधवा में 13 ओर खरगोन में 55 से अधिक मकानों पर बोलडोजर चला दिए गए। बकौल मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा पथराव करने वालो के मकानों को पत्थर बना दिया जाएगा। रामनवमी पर फैले साम्प्रदायिक तनाव के बाद राजनैतिक ओर सामाजिक संगठनों द्वारा प्रशासन की कार्यवाहीं पर सवालिया निशान लगाया जा रहा है। कार्यवाहीं को अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती बताया जा रहा है। प्रशासन द्वारा उपद्रवियों के वीडियो फुटेज के आधार पर कार्यवाहीं करना बताया जा रहा है। प्रशासन की कार्यवाहीं कुछ मामलों में शंकास्पद भी हो सकती है। किंतु पूरी कार्यवाहीं को अनुचित मानना भी ठीक नहीं होगा। इस पूरे घटनाक्रम में आश्चर्य पैदा करने वाली बात यह है कि किसी भी अल्पसंख्यक नेता या सामाजिक संगठनों द्वारा पथराव ओर सुनियोजित दंगो की आलोचना तक नहीं की गयी। भोपाल में गृहमंत्री से मिले अल्पसंख्यक नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने वर्ग विशेष के साथ दुर्भावना से कार्यवाहीं किये जाने का आरोप लगाया। यहां भी हिंसा,पथराव ओर नृशंसता की निंदा करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। इन सारे घटनाक्रमों के मध्य समाज मे गहरी खाई पैदा होती जा रहीं है। अल्पसंख्यक समाज के प्रति बहुसंख्यक समाज मे न सिर्फ आक्रोश अपितु घृणा का भाव निर्मित होता जा रहा है। यहां यह भी कहना लाजमी होगा कि इस हिंसक कार्यवाहीं में सम्पूर्ण अल्पसख्यंक समाज को दोषी नहीं माना जाना चाहिए। इन सब हालातों के मध्यनजर अल्पसंख्यक समुदाय को भारतीय परिवेश में ढलने की आवश्यकता दिखाई दे रहीं है। यह सहीं है कि कुछ समय से सारे भारत मे उग्र हिदुत्व का वातावरण निर्मित हो गया है। बावजूद इसके हिन्दू समाज ने कभी किसी भी धार्मिक जुलूस पर पथराव नहीं किया। राजनैतिक दलों से प्रेरित हिंदुत्व जरूर कट्टरपंथ की भाषा बोलने लगा है। इसी कट्टरपंथ से प्रेरित समाज भड़कीले भाषणों, गानों, पोस्टरों के माध्यम से माहौल को कसेला बनाए रखने की कोशिश करने में लगा हुआ हैं। इन सबके बावजूद भी अधिसंख्य बहुसख्यक समाज कट्टरपंथ से दूर है। यह सनातनी परम्पराओं का प्रभाव है कि अपने संस्कारों से बंधा बहुसख्यक समाज उतना कट्टरपंथी नहीं है जितना कि अल्पसख्यक समाज मे कट्टरपंथ व्याप्त है। इसका कारण बहुसंख्यक समाज का सनातनी परम्पराओं से संस्कारित होना हैं। जिस समाज में चीटी से लगाकर पशु-पक्षी तक का ख्याल रखा जाता हो, पेड़-पौधे नदी और प्रकृति को ईश्वर तुल्य माना जाता हो,वह समाज कभी भी हिंसक नहीं हो सकता है। उसे कट्टर ओर हिंसक बनाने के प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकतें हैं। इन्ही सनातनी परंपराओ को सींखने ओर अपनाने की आवश्यकता अल्पसख्यक समाज को भी है। यहीं है ‘मुख्य धारा’ जिसमें ‘जिओ ओर जीने दो’ के सिद्धान्त को अपना कर धार्मिक शोभायात्राओं पर फूल बरसाने की परंपरा व्याप्त हैं। यह सनातनी परंपरा ही है जिसमें दुनिया के सारे धर्मों का आदर करना सिखाया जाता हैं। यह सनातनी परंपरा ही है जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। जिस सनातनी परंपरा में ईमानदारी, नैतिकता ओर चारित्रिक गुणों को उच्च स्थान दिया जाता हैं। जहां राजा से भी राजधर्म की अपेक्षा रखी जाती है। जो समाज वसुधैव कुटुम्भकम की भावना से संचालित होता हो। आजादी के बाद विभाजन की विभाषिका के उपरांत भी भारत के संविधान में धर्म निरपेक्षता के सिंद्धात को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसी सिंद्धांत के कारण ही आजादी के बाद से अब तक विकास की धारा में धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया गया है। कहीं हुआ भी है तो अल्पसख्यंको से अधिक उस भेदभाव का बहुसख्यंको ने विरोध किया है ओर चिंताए जताई हैं। साम्प्रदायिक हिंसा भारत देश की सेहत के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है। अल्पसख्यंक समाज के प्रति उपजी आक्रोश की भावना का जवाब इसी वर्ग को अपने आचरण से ओर सनातनी परंपराओ को अपनाकर देना होगा। धार्मिक जुलूसों,शोभायात्राओं में यहां फूल बरसाने की परंपरा बरसों से जारी है। पत्थरों की यह परंपरा भारतीय नहीं है। भारत की विशेषता अनेकता में एकता की भावना हैं। अनेकों अंतर्विरोधों के बावजूद भारतीय समाज बरसों से अपनी सांझी विरासत पर गर्व करता आ रहा है। इस सांझी विरासत को संभालकर रखने की आवश्यकता है। दंगो ओर दहशत का वातावरण किसी भी धर्म के लिए ठीक नहीं है। यह भारत के विकास और प्रगति के मार्ग में बाधक हैं। फूलो के बरसाने से स्नेह जन्म लेता हैं। पथराव की भाषा घृणा को जन्म देती हैं।

India Edge News Desk

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