देहरादून के जलसे विरासत में जगजीत सिंह की याद

राजेश बादल

 देहरादून : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में इन दिनों राष्ट्रीय सांस्कृतिक उत्सव विरासत की धूम है । दो बरस कोविड महामारी की भेंट चढ़ गए । इसलिए इस बार दूर दूर से लोग उमड़ रहे हैं । देश की चारों दिशाओं से कलाकार, विद्वान, चिंतक, विचारक, लेखक, कवि, बौद्धिक और शास्त्रीय संगीत के जानकारों को इस मेले में आप देख सकते हैं ।

पंद्रह दिन चलने वाले विरासत में इस सप्ताह मैं भी एक कार्यक्रम के ज़रिए साक्षी बन गया । अमर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह की याद के साथ । चंद रोज़ पहले ही उनकी ग्यारहवीं पुण्यतिथि थी।अपनी ज़िंदगी का आख़िरी शो उन्होंने देहरादून में ही किया था । इसके बाद मुंबई लौटे और ब्रेन हेमरेज का शिकार बन गए । फिर होश में नहीं आए । मैने उनकी ज़िंदगी की दास्तान अपनी फ़िल्मों के अंशों के साथ सुनाई । साथ में उनके वे रूप ,जो हम सब नही जानते ।

जगजीत ने अपनी ज़िंदगी में अभाव और पीड़ा का सघन अहसास किया था ।इसलिए वे किसी को मुश्किल में देखते,तो अपनी झोली खोल देते । उनके पास मुसीबतजदा लोगों की सूची रहती थी । वे एक मित्र को साथ लेते । एक लिफाफों से भरा बैग लेते और चल पड़ते । सूची में जिनका नाम होता, उन्हें स्वयं पता नही होता कि कोई फरिश्ता उनके द्वार आ रहा है । जगजीत जाते ।कॉलबेल बजाते या सांकल खटखटाते । सामने वाला दरवाज़ा खोलता तो जगजीत खामोशी से उसे लिफाफा थमाते और अगले घर की ओर बढ़ जाते ।लिफाफे में पच्चीस हजार से लेकर दो लाख रुपए तक होते । महीने में वे दो तीन दिन ऐसा करते और यह सिलसिला कई साल चला । क्या जगजीत के इस रूप को आप जानते हैं ?

ऐसी ही अनेक कहानियां हैं ।एक बार गुजरात से कोई सज्जन आए । उन्हें बेटी की शादी करनी थी ।अपने ज़िले में वे जगजीत के नाम एक शाम करना चाहते थे ।सोचते थे कि चार पैसे टिकट से बचेंगे तो शादी का खर्च निकल आएगा । जगजीत समझ गए कि इतना पैसा उन सज्जन को नही बचेगा ।उन्होंने उन गुजराती सज्जन को चाय पिलाई । अंदर गए और एक डिब्बे में मिठाई लेकर आए । शो के लिए मना नहीं किया । तारीख़ तय करने की बात कही । जब वह व्यक्ति घर पहुंचा और मिठाई का डिब्बा खोला ,तो उसमें लाखों रुपए निकले । बेटी को आशीर्वाद के नाम पर । शादी धूमधाम से हो गई ।

अपने साजिंदों को उन्होंने फ्लैट ख़रीद कर दिए । यह बात तो सभी को पता है लेकिन ये दौलत भी ले लो,शौहरत भी ले लो ….के शायर सुदर्शन फाकिर एक समय आर्थिक रूप से बेहद तंग थे । स्वाभिमानी थे । मदद नहीं ले सकते थे । जगजीत ने हे राम ! एलबम लिखा और उसकी रॉयल्टी वाले खाते में सुदर्शन फाकिर का नाम लिखवा दिया । जब कंपनी वाले रॉयल्टी का चेक लेकर पहुंचे तो सुदर्शन जी भारी भरकम रकम देखकर हैरान रह गए । कंपनी वालों ने कहा कि यह उन्ही की रॉयल्टी है । सुदर्शन फाकिर ने तब फ्लैट खरीदा ।

इस आयोजन में कई बार दर्शकों और श्रोताओं की आंखें छलछला आई । विरासत के संयोजक श्री राजीव सिंह,पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर और संगीत के गहरे जानकार आला अफसर रहे विजय रंचन भी इसमें उपस्थित थे । पुराने दोस्त और भाई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म मेकर इंदर कथूरिया ने भी पहुंचकर मेरा मान बढ़ाया । चित्र इसी अवसर के हैं ।

India Edge News Desk

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