संपादकीय

मकान को वास्तु अनुकूल करने के लिए बिना तोड़-फोड़ के भी अनेक उपाय हैं

डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’

कुछ लोग वास्तुशास्त्र को बहुत हल्के में लेते हैं। ऐसे लोग कहते हैं वास्तु फालतू की चीज है, कुछ कहेंगे लोग अपना वास्तु का धंधा चमकाने के लिए इसे महत्व देते हैं। किन्तु वास्तुशास्त्र स्वयं में एक विज्ञान है। जो मकान वास्तुशास्त्रानुसार बने होते हैं उनमें प्रवेश करते ही एक अलग सी ऊर्जा अनुभूत होती है। उसमें स्वतः रौनक रहती है। जबकि वास्तु के प्रतिकूल बने हुए मकानों में रहने वालों को आलस आता है, काम में मन नहीं लगता, कार्य करने का उत्साह नहीं होता, चिड़चिड़ापन अनुभव करते हैं। मकान को वास्तु अनुकूल करने के लिए बिना तोड़-फोड़ के भी अनेक उपाय हैं।

भवन में कोई बड़ा दोष होने पर उसका गृहस्वामी कंगाल भी हो जाता है। उसमें रहने वाले किरायेदार को भी नुकसान उठाना पड़ता है। वहीं वास्तु अनुकूल भवन में निवास करने वाला गृहस्वामी अल्प समय में मालामाल भी हो जाता है। यह न समझें कि केवल वास्तु अनुसार मकान बनाकर रहने लगे तो घर में पड़े-पड़े ही करोड़पति बन जायेंगे। वास्तु अनुकूल मकान में अच्छी ऊर्जा रहती है, खूब रौनक रहती है, गृहस्वामी प्रसन्न रहता है, उसे कार्य करने का उत्साह बढ़ता है, नये नये विचार आते हैं, कुछ करगुजरने के जुनून के कारण आमदनी के स्रोत बनते जाते हैं, परिवारजन स्वस्थ रहते हैं। एक दो बड़े दोषों का निवारण करने पर भी हमारा कायाकल्प हो सकता है। इस विषय में हम केवल एक सच्ची घटना बाताते हैं।

एक व्यक्ति जिसे हम आच्छी तरह जानते हैं, वह आत्मीय ही हैं। सन् 2005 की बात है। मकान खरीदने का जुनून था, पैसे अधिक थे नहीं। धारणा ये थी कि फ्लैट नहीं खरीदना है, जमीन से ही छोटा-मोटा मकान हो वह ले लेंगे। खोज जारी रही। छोपड़ी नुमा टीनसेड का पुराना घर एजेन्ट ने बताया। वह घर दक्षिणमुखी भी था। जमा-पूंजी थोड़ी सी थी, कहीं मकान कड़बड़ न निकल आये, नहीं तो वह भी फँस जायेगी। मालूम किया व्यक्ति क्यों बेचना चाहता है। ज्ञात हुआ उसमें काम करने का मन नहीं लगता। उसकी धारणा थी कि इस मकान में कुछ ऐसा है जिस कारण कार्य नहीं हो रहे हैं, अधिक मेहनत करने पर भी कर्ज बढ़ रहा है।

आत्मीय ने वास्तु टिप्स लिए, वास्तु जानकारी जुटाई। लगभग 20-25 दिन तक सामने की चाय की दुकान पर चाय पीता और मकान को देख कर लेने न लेने पर विचार करता। अन्त में उसकी आर्थिक हैसियत के अंदर मकान होने और दक्षिणमुखी होने पर भी मुख्यद्वार की ओर राजमार्ग होने के कारण खरीद लिया गया। खरीदने के उपरान्त उसे बनवाने का सामर्थ्य नहीं था। केवल वास्तु अनुसार दो बड़े बदलाव करना थे। एक तो शौचालय ठीक ईशान में था उसे बदलना था और दूसरा मकान पर लगे टीनों का ढलान दक्षिण की ओर था, उसे पूर्व की ओर करना था। जब शौचालय तोड़ा जाने लगा तो उसी के नीचे ईशान दिशा में ही सैप्टिक टैंक मिला। उसे साफ करवाया गया। मकान का टूटन का मलवा ही उसमें भरवाकर ईशान को छोड़कर निकट ही तात्कालिक टायलेट बनवाया गया। ईशान में स्नानगृह बना। किन्तु यह संकल्प लिया गया कि पूर्व दिशा से भी लायलेट सीट हटाना है। समय बीतता गया, तीन-चार वर्षों में मकान बनाने की क्षमता आ गई। दो मंजिंल मकान बना, उपरान्त तीसरी मंजिल भी बन गई। मकान जब बनवाना प्रारंभ किया तब ईशान में पिलर के डोबरे के साथ पानी टंकी भी बनवा ली गई थी। पहले मकान बनाने में उसी का पानी काम में आता था, उपरान्त जल भण्डारण के काम में वह आता है और वास्तु का दोष मिटा कर उससे अनुकूल वास्तु भी हो गया, बल्कि ईशान दिशा में बने भूमिगत जलभण्डारण से मकान के अन्य छोटे-मोटे दोषों का भी परिहार होता है। आज उस मकान की अच्छी कीमत है और मकाल मालिक भी अच्छी हैसियत रखता है। इसलिए यदि हम अपनी और अपने परिवार की प्रगति चाहते हैं तो मकान के गंभीर वास्तुदोषों की अनदेखी नहीं करना चाहिए।

India Edge News Desk

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