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गुरुकुल की तर्ज पर चलने वाला यह स्कूल बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ शास्त्रों का ज्ञान भी देता है

पहले के समय में विद्यालय की जगह गुरुकुल हुआ करते थे। जिसमें बालक को शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्रों का भी ज्ञान दिया जाता था

खरगोन: पहले के समय में विद्यालय की जगह गुरुकुल हुआ करते थे। जिसमें बालक को धर्म शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्रों का ज्ञान भी दिया जाता था। इन गुरुकुलों (आश्रमों) में रहकर बच्चे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे। लेकिन बदलते समय के साथ शिक्षा व्यवस्था भी बदल गई। गुरुकुलों की जगह अब स्कूलों ने ले ली है और गुरु शिक्षक बन गये हैं। इसके साथ ही शिक्षा भी इतनी महंगी हो गई है कि आम आदमी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहा है। ऐसे में यहां आज भी गुरुकुल की तर्ज पर स्कूल चल रहा है और बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जा रही है |

यह विद्यालय डॉ. स्वामी गुरु शरणानंद द्वारा मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के कावड़िया गांव में मां शरणम आश्रम के नाम से चलाया जाता है। यहां स्कूल के साथ-साथ गुरुकुल भी चलाया जाता है। जिसमें बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ रहने और खाने की सुविधा भी मिलती है। गुरुकुल की तरह यहां भी बच्चों को शिक्षा मिलती है। आश्रम के बच्चों का वातावरण भी गुरुकुल की तरह ही धोती कुर्ता वाला है। स्कूलों और गुरुकुलों में बच्चों को मेज-कुर्सी पर नहीं, बल्कि जमीन पर कालीन पर पढ़ाया जाता है।

125 बच्चों को फ्री में मिल रही शिक्षा

स्कूल के प्रिंसिपल महेश पाटीदार बताते हैं कि साल 2015 में यहां स्कूल और आश्रम (गुरुकुल) की शुरुआत हुई. यह स्कूल बच्चों को हाई स्कूल तक की शिक्षा प्रदान करता है। एमपी बोर्ड का निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। वर्तमान में विद्यालय में 125 बच्चे नियमित रूप से निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ये बच्चे रोजाना यहां आते हैं, शिक्षा लेते हैं और अपने घर लौट जाते हैं। इसके अलावा गुरुकुल में 45 बच्चे हैं जो यहीं रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यहां इन बच्चों को सिलेबस के अलावा शास्त्र, योग और अध्यात्म का ज्ञान यहां दिया जाता है. गुरुकुल में रहने वाले सभी बच्चो का खर्च संस्था वहन करती है |

बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए मदद दी जाती है

उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चे जो गरीब परिवार से हैं, स्कूल जाने में असमर्थ हैं, उन बच्चों को यहां प्रवेश दिया जाता है. यहां के अधिकतर बच्चे आदिवासी वर्ग से आते हैं. बच्चों के माता-पिता उन्हें एक जोड़ी कपड़ों में यहां छोड़ जाते हैं। इसके साथ ही यहां ऐसे बच्चों को भी प्रवेश दिया जाता है जिनके माता-पिता नहीं होते हैं। गुरुकुल में रहने वाले बच्चों को यहां 10वीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान की जाती है, आगे की पढ़ाई के लिए जब बच्चा बाहर किसी संस्थान में प्रवेश लेता है तो उसे आर्थिक मदद दी जाती है।संस्था द्वारा भी किया जाता है।

गुरुकुल में अब भी कई ऐसे बच्चे हैं जो यहीं रहकर अपनी आगे की पढ़ाई कर रहे हैं

संस्था इंदौर जैसे बड़े शहरों में पढ़ने वाले गुरुकुल के बच्चों को खाने-पीने का खर्च भी मुहैया कराती है। संस्था का मानना ​​है कि बच्चों को प्राचीन और आधुनिक दोनों काल का ज्ञान मिलना चाहिए। इसलिए बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ शास्त्रों का ज्ञान भी दिया जाता है। इनमें बच्चों को श्री शुक्त, रात्रि शुक्त, ईशा उपनिषद के अध्ययन के साथ-साथ पंचदेवों की नियमित  पंच देवताओं का 25-30 मिनट का हवन, योग क्लास होती है जिसमे सभी बच्चे शामिल होते है. इसी के साथ बच्चो को हैंड स्केल जैसे इलेक्ट्रीशियन, कारपेंटर, प्लंबरिंग इत्यादि की ट्रेनिंग भी दी जाती है |

सुबह-शाम होती है पूजा-अर्चना

बच्चों को गुरुकुल जैसा अहसास कराने के लिए आश्रम परिसर में सभी देवी-देवताओं के मंदिर बनाए गए हैं। इसमें गुरुकुल की संस्थापिका आनंदमई का मंदिर और ध्यान केंद्र बना हुआ है, इसके अलावा यहां राधा कृष्ण मंदिर, महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर, माता काली मंदिर, गुरुद्वारा और यज्ञ शाला भी स्थापित हैं। प्रतिदिन सुबह-शाम मंदिरों में आरती और पूजा होती है। इसके साथ ही यहां एक गार्डन भी बनाया गया है, जिसमें कई तरह के फलदार, छायादार और औषधीय पौधे और सब्जियों के पौधे हैं, जो पूरी तरह से जैविक तरीके से उगाए जाते है. गौशाला भी इसी परिसर में संचालित होती है. गायों से मिलने वाले दूध और फलों और सब्जियों का उपयोग गुरुकुल के बच्चों के भोजन के लिए लिया जाता है |

India Edge News Desk

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