कांग्रेस की झूठ पर आधारित आभासिक राजनीति

राज सक्सेना
वैसे तो कैडर आधारित राजनीति में भाजपा विश्व में प्रथम स्थान पर खड़ी है। इस क्षेत्र में तो कोई भाजपा से मुकाबला कर ही नहीं सकता मगर अवशेष दलों के पास भी अपनी अपनी विशिष्ट कतिपय विशेषताएं हैं। किसी के पास जातिवाद है तो कोई विशुद्ध धार्मिक राजनीति के रथ पर सवार है। किसी के पास एक समृद्ध इतिहास और तथाकथित भाव विभोर पलों का भंडार है। सबके अपने अपने राजनैतिक हथियार हैं मगर कांग्रेस आक्र ामक राजनीति में आज भी सर्वोच्च शिखर पर आसीन है।
जब कांग्रेस ने ‘चौकीदार चोर है’ नारे का अवलम्बन लिया, तब सच्चाई में पलीता लग ही गया था। लोगों को लगा था भाजपा की राजनीति की जड़ें हिल गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी को उस समय भाजपा को ट्विटर के अपने प्रतीक चिन्ह में ‘मैं हूं चौकीदार’ लिख कर बचाने के लिए आगे आना पड़ा। उसके बाद भाजपा के सारे मंत्री कार्यकर्ता और समर्थक भी इसी प्रकार काउंटर में उतरे। राहुल गांधी को अदालत में घसीटना पड़ा, उनसे माफी मंगवानी पड़ी। आसान नहीं था यह सब। उसके बाद राफेल हो या पैगासस का मुद्दा, कुछ समय के लिए ही सही, कांग्रेस की झूठ पर आधारित आभासिक राजनीति के कारण भाजपा को फिर बचाव की राजनीति पर उतरना पड़ा।
अब जब बात अडानी पर आई है तो फिलहाल इतना आसान तो नहीं लग रहा कि भाजपा इस मुद्दे से सहजता से पीछा छुड़ा पाएगी। देश के पटल पर एक मामूली सी घटना रवीश कुमार का एनडीटीवी से इस्तीफा देना है किंतु नान कैडर पालिटिक्स की गहराई देखिए कि जब सिलसिला शुरू हुआ, तो लोकतंत्र के तीन स्तम्भों में से दो बड़ी संस्थाएं जाने अनजाने मैदान में आ गयीं। एनडीटीवी का स्वामित्व परिवर्तन किसी संस्था के लिए एक आम बात है मगर हिंडनबर्ग के माध्यम से मामले को इतना उछाला गया कि न्यायालय को अदानी मामले पर जांच को लेकर समिति का गठन सरकार द्वारा गठित समिति से अलग करना पड़ा।
मोदी की राजनीति का एक अलग ही गम्भीर कूटनीतिक स्तर है। मोदी जी कभी आक्र ामक राजनीति के लिए नहीं जाने गए। विरोधियों की राजनीति को ही अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल कर लेना मोदी राजनीति का मूलमंत्र है। विरोधियों की राजनीति शिखर पर पहुंच जब सारे पत्ते खोल देती है तो उसके बाद उनकी राजनीति शुरू होती है। विरोधियों के सारे प्रयासों और मुद्दों को एक झटके में अपने पक्ष में भुना लेती है। विरोधियों की अदानी पर राजनीति जब शिखर पर होती है तभी राहुल गांधी का संसद से निष्कासन उसे यूटर्न दे देता है।
प्रारम्भ में मोदी राजनीति नहीं करते हैं, नियम और कायदे से मुद्दे का सामना करते हैं लेकिन राजनीति का जवाब तो राजनीति से ही दिया जा सकता है। सत्र खत्म होते ही अचानक से राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार एनडीटीवी के एक इंटरव्यू में हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के खिलाफ जाकर अडानी के अभिरक्षक हो जाते हैं और केवल इतना ही नहीं, वे यह भी बताते हैं कि वे लोग भी कभी टाटा के विरोध की राजनीति करते थे और बाद में समझ में आया कि विरोध गलत था। देश का विकास जरूरी है। मोदी ने बार-बार प्रमाणित किया है कि आक्र ामक राजनीति यदि कांग्रेस का क्षेत्र है, तो एनकाउंटर पालिटिक्स में मोदी से चतुर कोई नहीं है।
कांग्रेस अब एक और खबर चला रही है कि अडानी की कंपनी में कोई चीनी अधिकारी है जो उनके कई काम संभालता है। इस खबर को कांग्रेस के नेता, कार्यकर्ता और राहुल गाँधी रोज शेयर कर रहे हैं। ऐसा प्रतिस्थापित किया जा रहा है जैसे अडानी ग्रुप को कोई चीनी ही चला रहा है जबकि सच यह है कि यह व्यक्ति रिपब्लिक आफ चायना (ताइवान) का नागरिक है। कांग्रेस में गजब की झूठ पर आधारित राजनीतिक चलती है।कुछ भी बोल दो। सब चलता है मगर विदेशी मामलों, रक्षा और सुरक्षा के मामलों पर तो सब दलों को एकमत होना ही चाहिए।
यह भी सबको मालूम है कि सावरकर का समर्थन करने से भाजपा की राजनीति में निश्चित उछाल आएगा जबकि सावरकर के विरोध से कांग्रेस की महाराष्ट्र में जमीन पूरी तरह खिसक सकती है। इसलिए सावरकर के मुद्दे पर भी राहुल गांधी को ऐसा एनकाउंटर मिला कि उन्हें दबे पांव अपने सहयोगी दलों से,पवार के साक्षात्कार के बाद सावरकर के मुद्दे पर चुप्पी का समझौता करना पड़ा।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि प्रतिद्वंद्वी को नुक्सान पहुंचाने के लिए ही कांग्रेसी झूठ का सहारा नहीं लेते बल्कि आगे बढऩे के लिए भी झूठ दर झूठ की सीढ़ी का सहारा लेते हैं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चौरासी के लोकसभा चुनाव के लिए राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाये जाने का जनमत तैयार करना था। इस समय राजीव के बचपन के मित्र और एड एजेंसी रेडिफ्यूजन के अजीत बालाकृष्णन को याद किया गया। इनको चौरासी के चुनावों के एड कैम्पेन का काम सौंपा गया। चौरासी के चुनावों का आधार वाक्य राजीव गांधी के ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’ जैसे वाक्य को निश्चित किया गया। राजीव गांधी अपने भाषणों में लगातार अकाली दल के 1973 के आनंद पुर साहब के प्रस्ताव को दोहराते रहे जैसे अकालियों ने अलग देश मांग लिया हो? हिंदुओं के अंदर सिखों के खिलाफ डर और नफरत का कैम्पेन चलाया गया,क्या देश की सीमायें आपके दरवाजे तक सिमट कर रह जायेंगी?
केवल यही नहीं, अपने पारिवारिक सदस्य मेनका गांधी पर भी इस मूल मन्त्र का प्रयोग किया गया। कई बरस तक उनके लिए ‘बेटी है सरदार की-कौम के गद्दार की नारे लगाये गये और लिखे गये। यही नुस्खा अमिताभ और अन्य स्वजनों अरुण नेहरु आदि पर भी आजमाया गया। भारत के टुकड़े होने से सिर्फ कांग्रेस बचा सकती है जैसे नारे फिट किये गये।
केवल इतना ही नहीं, अपनी ही सरकार को हटाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना कर सिद्धू के माध्यम से अपनी ही सरकार को नशेड़ी पंजाब के रूप में बदनाम किया गया और मुख्यमंत्री बदला गया।
2004 के लोकसभा चुनाव के पहले केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। गठबंधन सरकार होने के बावजूद देश में चारों तरफ अमन चैन था। अर्थव्यवस्था प्रगति कर रही थी, हर क्षेत्र में देश प्रगति कर रहा था जिससे उत्साहित होकर बाजपेयी जी ने इंडिया शाइनिंग का नारा दिया और तय समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। तुरंत कांग्रेस की प्रोपगंडा मशीनरी रातों रात सक्रि य हो गयी। सवा सौ करोड़ लोगों के देश में ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि कहीं से कोई नकारात्मक खबर आये ही नहीं। बस छोटी से छोटी खबर को पकड़कर मीडिया में पूछा जाने लगा कि क्या यही है ‘इंडिया शाईनिंग’। एक महीने में ही सरकार की इतनी मिट्टी पलीत करदी गयी कि लोगों ने अच्छी खासी ईमानदार और देशभक्त सरकार को गिराकर मनमोहन सिंह की सरकार बनवा दी जिसके किस्से आज भी हर किसी की जुबान पर हैं। ऐसा ही 2019 में भी करने की कोशिश की गयी मगर मोदी के पास जनता का विश्वास था, इसलिए सफलता नहीं मिल सकी।
अब धारावाहिक रूप से हर हफ्ते मीडिया में सरकार के खिलाफ कोई न कोई झूठा मुद्दा उछालकर फिर से अपनी सरकार के लिए जमीन तैयार करने का काम शुरू कर दिया गया है मगर अब जो सरकार है, वह हर मोर्चे पर नये नये कीर्तिमान स्थापित कर रही है। और अब लोग भी इतने भोले नहीं रह गये हैं जो विपक्ष की ऐसी कूटनीतियों को पहचानते न हों। इसलिए अबकी बार कांग्रेस ने अपनी प्रोपेगंडा मशीनरी को काफी पहले सक्रि य कर दिया है।