विश्वरंग : मैथिली ठाकुर ने अपने गीतों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया
इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
भोपाल : अपने लोक संगीत से लोगों के दिलों पर राज करने वाली मैथिली ठाकुर ने विश्वरंग में अपने गीतों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जनता को युवा स्टार गायक की धुन पर नाचते देखा जा सकता था। मैथिली की आवाज ने विश्वरंग की सांस्कृतिक रात को यादगार बना दिया। देर रात तक लोकगीतों की रंगत संगीत प्रेमियों में गुंजायमान रही। उन्होंने ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके’ के साथ अपने प्रदर्शन की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने ‘उनकी नजरों ने कुछ ऐसा जादू किया’, ‘तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी’ और कई अन्य लोकप्रिय गीतों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पहले सत्र की शुरुआत ‘युद्ध और विस्थापन: वैश्विक परिप्रेक्ष्य’ पर चर्चा के साथ हुई। अग्निशेखर, नोमन शौका, अनूप शेठी, मनोहर बाथम और अच्युतानंद मिश्रा ने वक्ताओं के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जबकि नंदकिशोर आचार्य ने सत्र की अध्यक्षता की। नंदकिशोर आचार्य ने कहा, “जैसे मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं, वैसे ही प्रकृति एक दिन मानव जाति को नष्ट कर देगी। इसने बिना किसी घोषणा के अपना बदला लेना शुरू कर दिया है। यह मनुष्य के खिलाफ एक प्रति-युद्ध है।”
अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि दुनिया में कोई भी जंग इंसानियत के खिलाफ ही लड़ी जाती है। विस्थापन की बात करते हुए अग्निशेखर ने कहा कि विस्थापन एक पते का नुकसान है. नोमन शौका ने जीशान साहिल की कविता, “जंग के दिनों में मोहब्बत आसान हो जाती है और जिंदगी मुश्किल” को उद्धृत किया। गणमान्य अतिथियों ने त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वरंग संवाद’ का भी अनावरण किया।
महोत्सव ने ‘शिक्षा और रंगमंच’ पर एक और प्रेरक सत्र का आयोजन किया। एमपीएसडी के पूर्व निदेशक संजय उपाध्याय, फिल्म कला निर्देशक जयंत देशमुख, टैगोर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक मनोज नायर और प्रसिद्ध थिएटर कलाकार आलोक चटर्जी ने सत्र में भाग लिया। अपने करियर के शुरूआती दिनों को याद करते हुए मनोज नायर ने कहा कि रंगमंच अपने आप में एक शिक्षा है। इस बीच, संजय उपाध्याय ने दावा किया कि रंगमंच की शिक्षा एक ईमानदार व्यक्ति का निर्माण करती है। जयंत देशमुख ने बच्चों को कविताएं और कहानियां सुनाने के महत्व पर जोर दिया।