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गोरखी में 'महाराज' बनकर क्यों पूजा करने जाते हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया? बेटे के साथ दिखा रॉयल अवतार

सिंधिया परिवार के लिए गोरखी देवघर इतना खास क्यों है जहां विशेष विधि से पूजा करने हर साल परिवार पहुंचता है, इसके साथ ही ग्वालियर शाही परिवार राजसी अंदाज में तैयार होता है

 ग्वालियर : देशभर में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से बनाया जा रहा है। देश में मौजूद शाही रियासतों में से एक ग्वालियर रियासत में भी नवमी का त्यौहार बनाया गया। ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने बेटे महाआर्यमन के साथ शाही लुक में गोरखी देवघर पूजा करने पहुंचे।

ग्वालियर परिवार के लिए गोरखी देवघर काफी महत्व रखता है। कुछ भी बड़ा अवसर या त्यौहार होने पर परिवार यहां पर पहुंच कर पूजा करता है। ऐसा ही एक त्योहार नवारात्रि में नवमी और विजयादशमी का होता है। जिस दिन ग्वालियर रियासत के महाराज शाही अंदाज में तैयार होकर पूजा की। 10 बातों में जानें देवघर गोरखी के इसकी खासियत।

ग्वालियर का शाही परिवार के लिए खास क्यों है गोरखी देवघर :

ग्वालियर का शाही परिवार नवमी और विजया दशमी का त्यौहार गोरखी स्थित देवघर में मनाता है। परिवार के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया और युवराज महाआर्यमन सिंधिया शाही पोशाक पहनकर पूजा करने के लिए पहुंचते है। गोरखी देवघर ग्वालियर परिवार के लिए खास माना जाता है। इसके साथ ही गोरखी देवघर में ग्वालियर शाही परिवार के कुल देवी देवताओं के मंदिर है।

गोरखी में क्यों होती है पूजा :

दरअसल, सिंधिया परिवार के सभी कुल देवी और देवता जहां विराजे जाते है उनके गोरखी देवघर कहा जाता है। हर त्यौहार या खास अवसर पर परिवार यहां पहुंचकर विधि-विधान से पूजा करता है। इतना ही नहीं राजघराने का परिवार अपने राजशाही अंदाज में तैयार होकर पूजा करने आता है। शारदीय नवरात्रि में यहां खास पूजा होती है।

देवघर में सूफी संत की भी पूजा करता है सिंधिया परिवार :

सिंधिया परिवार देवघर में उर्स के समय सूफी संत शाह औलिया की भी पूजा में शामिल होता है। हालांकि यहां परिवार के महाराज साधारण वेशभूषा में पहुंच कर गोरखी देवघर में पूजा करते है। यहां पर पूजा करने की परंपरा महादजी सिंधिया के समय से चली आ रही है। यहां वह एक समय में युद्ध से नहीं लौटे थे। तब महारानी ने मंसूर शाह औलिया जाकर प्रार्थना की थी। इसके बाद से महादजी सिंधिया घायल हालतर में सहीं लेकिन युद्ध से लौट आए थे। इसके बाद से महादजी सिंधिया ने मालवा और उत्तर भारत में कई युद्ध जीते। तभी से गोरखी के देवघर में पूजा करने की प्रथा चालू हुई।

कैसे होती है पूजा :

शाही परिधान पहने महाराज देवघर पहुंचते है। वहां पर परंपरागत तरीके से लगाए गए आसन पर वे विराजमान होते है। मंत्रोच्चारण के साथ पूजा पाठ शुरू होती है। पूजा के पूरे समय ढोल नगाड़े बजते रहते है।

India Edge News Desk

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