आदमी से क्यों है आदमी का भेदभाव?
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सांवला राम चैहान
भारत को आजाद हुए आज 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी आदमी का आदमी से भेदभाव बरकरार है। यह सही है कि भेदभाव की जड़ धीरे-धीरे खत्म होगी। एकदम खत्म हो जाए, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि शिक्षा का अभाव भेदभाव का कारण है। ज्यों-ज्यों शिक्षा का प्रचार-प्रसार होगा, त्यों-त्यों भेदभाव में कमी आती जायेगी।
शिक्षा के प्रचार-प्रसार के होते हुए एक शिक्षित आदमी अगर भेदभाव करता है तो कितना अटपटा लगता है। एक शिक्षित आदमी होकर दूसरे आदमी से भेदभाव करता है तो एक अनपढ़ से क्या अपेक्षा रख सकते हैं।
बालक का सर्वांगीण विकास करने वाले शिक्षक जिन्हें ‘राष्ट्रनिर्माता’ की संज्ञा दी जाती है, वे अपने शिष्य के हाथ लगाये लोटे व झारे का पानी नहीं पीते क्योंकि वह किसी निम्न वर्ग का सदस्य है। ऐसे में वह शिष्य अपने अध्यापक की क्या सेवा करेगा? सेवा को छोड़ वह बच्चा अपने-आप से घृणा करने लगेगा। वह भावनात्मक रूप से कुंठित होगा, वह अपने आप को विद्यालय से अलग समझेगा। धीरे-धीरे वह बच्चा विद्यालय से कटता जायेगा ओर एक दिन ऐसा आयेगा कि वह विद्यालय छोड़ देगा, सिर्फ भेदभाव के कारण। ज्यादातर ग्रामीण विद्यालयों में भेदभाव खुले रूप में चलता है।
शांति व व्यवस्था बनाये रखने वाले ‘पुलिस विभाग’ के कार्यालयों में भेदभाव की स्थिति स्पष्ट देखने को मिलती है। ये कानून के रक्षक ही ऐसा करते हैं तो भेदभाव से पीडि़तों की कैसी सेवा कर सकेंगे?
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग तालाबों, कुओं व टांकों का पानी पीते हैं। उन तालाबों से निम्न वर्ग के लोगों को दूर रखा जाता है क्योंकि उसने पानी में हाथ व पैर भी डुबो दिया तो पानी अपवित्र हो जायेगा। उच्च वर्ग के लोग उसे पीने लायक नहीं समझते लेकिन उस तालाब के पानी में पशु गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट, गधा, घोड़ा और अन्य पशु के अंदर पानी पीने व मूत्र, गोबर अन्दर करने और उच्च वर्ग के अंदर नहाने, कपड़े धोने के बावजूद भी पानी पीने योग्य होता है लेकिन निम्न वर्ग के आदमी के मात्र छूने से पानी अपवित्र गंदा हो जाता है। टांकों के पानी में गर्मी के मौसम में कुत्ते, लोमड़ी आदि अन्दर मर जाते हैं। वह पानी पीते हैं, गन्दा नहीं होता है लेकिन निम्न वर्ग के आदमी ने बाल्टी टांके से पानी से भरकर निकाला तो गंदा हो जायेगा।
यह कितनी विडम्बना है कि ईश्वर ने सबसे बुद्धिमान जीव ‘आदमी’ बनाया है। वहीं ‘बुद्धिमान’ इतनी संकीर्ण सोच रखता है तो कितना अफसोस होता है।
हां, छुआछूत (भेदभाव) करनी चाहिए। मैं यह नहीं कहता कि बिलकुल भी मत करो मगर भेदभाव के अर्थ को समझते हुए ऐसे आदमी से छुआछूत करना चाहिए जो शरीर व कपड़ों से गंदा हो। जिसके घर में गंदगी हो, उससे भेदभाव करना चाहिए, वह चाहे किसी भी वर्ग का क्यों न हो। भेदभाव गंदगी से किया जाता है न कि आदमी से।