भाजपा की बढ़ती सामाजिक स्वीकार्यता का परिणाम और प्रमाण दिल्ली विजय: डॉ राघवेंद्र शर्मा

भोपाल

दिल्ली के चुनाव में फतह हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी देश का एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल बन गया है, जिसने संघर्ष करते हुए अनेक ऐसे सोपान तय कर दिए, जिन्हें आने वाले समय में विद्यार्थी पढ़ेंगे और सियासत के अनुभवों से काफी कुछ सीख सकेंगे। यह बात इसलिए लिखना प्रासंगिक लगती है, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा राजनीतिक संगठन है जिस पर आजादी के पहले और आजादी के बाद सत्ता पर काबिज संगठन द्वारा कभी देशद्रोह के तो कभी सांप्रदायिकता के आरोप लगाए जाते रहे हैं। यही नहीं, समय-समय पर पहले जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी अनेक बंदिशों की शिकार भी होती रही हैं। और तो और, इनके नेताओं को खतरनाक अपराधियों के साथ लंबे कालखंड तक जेलों में भी बंद रखा गया। लेकिन तारीफ करना पड़ेगी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोख से जन्म लेने वाली जनसंघ और आज की भारतीय जनता पार्टी की, उसके कार्यकर्ताओं ने अपना धैर्य नहीं खोया।

सबसे बड़ी तारीफ की बात तो यह है कि इस पार्टी ने अनेक प्रतिकूलताओं के बाद भी ढेर सारी राजनैतिक और चुनावी पराजयों को झेलने के बाद भी अपनी रीति नीति से समझौता नहीं किया। यह जन्मजात राष्ट्रवादी बनी रही और आज भी भाजपा नेताओं ने तुष्टिकरण का रास्ता नहीं अपनाया है। पहले जनसंघ और फिर बाद में भाजपा ने स्पष्ट रूप से यह उद्घोष किया कि हम कश्मीर से धारा 370 हटाएंगे, अयोध्या में राम मंदिर बनाएंगे और देश में समान नागरिक कानून लागू करेंगे। कितने आश्चर्य की बात है कि चुनावी लाभ हानि की दृष्टि से एक ओर जहां भारत के अधिकांश राजनैतिक दल अपनी नीतियों में अवसरवादी बदलाव करते रहते हैं। वहीं जनसंघ और फिर 1980 से अस्तित्व में आई भाजपा अपनी टेक पर अड़ी रही। उसकी इस सनातनी और राष्ट्रवादी प्रतिज्ञा को तथा कथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने कभी राष्ट्रद्रोह तो कभी सांप्रदायिकता के नाम से कलंकित किया जाना जारी रखा। जब जब धारा 370 हटाने की बात की गई तो देशवासियों को भयाक्रांत किया गया कि यह जनसंघी, यह भाजपाई देशभर में गृह युद्ध के हालात पैदा करने का ताना-बाना बुन रही हैं। राम मंदिर का आंदोलन रोपा तो कहा गया कि यह लोग सांप्रदायिक हैं। जब समान नागरिक कानून लागू करने का संकल्प दोहराया गया तो भय दिखाया गया कि इससे अल्पसंख्यकों का दमन किया जाएगा। हालांकि ऐसे धर्मनिरपेक्ष दलों को कुछ अवसरवादी किस्म के सियासी दलालों का सहारा तो मिला। जिन्होंने अपने निजी फायदों के मद्देनजर अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच एक गहरी खाई खोदने का सुनियोजित षड्यंत्र जारी बनाए रखा। लेकिन देश की आधिसंख्य जनता जनार्दन भाजपा की राष्ट्रवादी और सनातनी नीति को गंभीरता से लेती रही।

यदि किसी वर्ग विशेष अथवा उसे लगातार भ्रमित बनाए रखना वाले दलालों अर्थात नेताओं को लगा है कि हमें भाजपा को वोट नहीं करना है, तो भाजपा ने भी उन्हें अपने पाले में करने को लेकर बहुत ज्यादा आतुरता नहीं दिखाई और ना ही तुष्टिकरण का रास्ता अपनाया। हां संवैधानिक और अन्य संभावित तरीकों से यह संदेश लगातार जाहिर करती रही कि हमें तुमसे बैर नहीं, लेकिन हम राष्ट्रवाद और सनातन का झंडा बुलंद करते रहे हैं सो आगे भी करते रहेंगे। यदि इस स्वरूप में हमें कोई स्वीकार करता है तो उसका सहर्ष स्वागत है। हम सभी भारतीय नागरिकों की भांति उनके संवैधानिक अधिकारों का भी संरक्षण करेंगे‌। किंतु, यदि कोई अपने मत के बदले यह उम्मीद करे कि भाजपा इसके लिए अपनी रीति और नीति से समझौता कर लेगी तो यह असंभव ही रहेगा। यही वजह है कि उसकी स्पष्टवादिता और संघर्षशील नीति के चलते भाजपा का कद देश और दुनिया में लगातार बढ़ रहा है।  अब यह  इतना बढ़ चला है कि उसकी यश कीर्ति भारतीय सीमाओं को पार करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व के लोगों को प्रभावित करने लगी हैं। इस पार्टी के नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक कद तो इतना ऊंचा हो चला है कि दुनिया भर के राजनेता उन्हें वैश्विक व्यक्तित्व के रूप में मान्यता देने लगे हैं। तो फिर भारतीय जनता उन्हें सम्मान ना दे, यह कैसे हो सकता है? विरोधी दल भले ही भाजपा और श्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रोपेगेंडा खड़ा करते रहें । लेकिन सत्य यही है कि श्री मोदी के प्रत्येक कथन को अब जनता के बीच गारंटी के रूप में मान्यता प्राप्त है। देश की जनता यह मानती है कि श्री मोदी जो कहते हैं उसे करके अवश्य दिखाते हैं। धारा 370 हटाने, अयोध्या में राम मंदिर बनाने और अब यूनियन सिविल कोड लागू करने की कवायदें शुरू होने के बाद "मोदी है तो मुमकिन है"  इस नारे को आम जनता की ओर से प्रमाणिकता स्वीकार्यता प्राप्त हो गई है। यही वजह है कि देश के विभिन्न राज्यों में से कुछ जगहों पर भले ही विरोधी पक्षों की सरकारें हों, लेकिन जब लोकसभा के चुनाव होते हैं तब आम जनता का मत अधिकतम भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के पक्ष में ही जाता दिखाई दे रहा है। यह भी गौर करने लायक बात है कि जहां भाजपा परिस्थितिवश अथवा सुनियोजित रणनीति के तहत राज्य स्तरीय चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत करने में रुचि नहीं रखती, वहां मतदाता नरेंद्र मोदी के चेहरे को देखकर विधानसभा के चुनाव में भी अपनी समस्याओं और मुद्दों को लेकर निश्चिंतता का अनुभव करने लगा है। इसी का नतीजा है कि देश के 21 राज्यों में राज्यों में भाजपानीत राष्ट्रीय जन तांत्रिक गठबंधन की सरकारें स्थापित हैं तथा इनमें से 15 राज्यों में तो भाजपा केवल अपने दमखम पर सरकारों का संचालन पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रही है। इस बात को दिल्ली विधानसभा के चुनाव में बेहद स्पष्ट रूप से देखा और महसूस किया जा सकता है। सब जानते हैं कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं ने हमेशा की तरह इस बार भी विक्टिम कार्ड खेलने का भरपूर प्रयास किया। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अन्य विरोधी दलों ने भी दिल्ली के मतदाताओं को भड़काने तथा उन्हें भ्रमित करने के हर संभव प्रयास किये। अपनी हर असफलता को भाजपा के सिर मढ़ने के विरोधी दलों के प्रयास तो सदैव ही बड़े पैमाने पर चलाए रहे। शायद इसीलिए सत्ता पर काबिज आप और उसके नेता पूरी तरह आश्वस्त थे कि इस बार भी दिल्ली के मतदाताओं को गुमराह किया जा सकेगा और एक बार फिर दिल्ली फतह की जा सकेगी। लेकिन आम आदमी पार्टी समेत अन्य विरोधी दलों के मुगालते उस समय भंग हो गए जब भाजपा हमेशा की तरह राष्ट्रवाद और जनहितैषी निर्णयों को आगे रखकर चुनावी मैदान में डटी रही। दिल्ली के मतदाताओं ने भी भ्रमित हुए बगैर भाजपा शासित अनेक प्रदेशों की सरकारों द्वारा किए जा रहे जनहितैषी कार्यों का बारीकी से अध्ययन किया जाना जारी रखा। दिल्ली वासियों ने यह परिदृश्य भी ध्यान से देखा कि एक ओर दिल्ली में यमुना के प्रदूषित हो जाने से वहां सत्ता पक्ष के तात्कालिक मंत्री और मुख्यमंत्री भी पानी में उतरने से घबराते, कतराते रहे। नदी में उठ रहे जहरीले सफेद फैन को देखकर विरोधी दलों के अन्य नेता भी नाक भौं सिकोड़ते रहे। वहीं दूसरी ओर दिल्ली वासियों ने भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में आयोजित प्रयागराज कु महाकुंभ को भी देखा, जहां क्या नेता क्या मंत्री, क्या साधु क्या महात्मा और क्या जनता जनार्दन, सबके सब पूरी श्रद्धा के साथ संगम पर डुबकियां लगा रहे थे और निसंकोच होकर दोनों हाथों से संगम के पवित्र जल से आचमन करते दिखाई दे रहे थे। उन्होंने यह भी देखा कि एक ओर दिल्ली में कचरे के पहाड़ खड़े होते चले जा रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा शासित राज्यों के नगर एवं महानगर बरसों से स्वच्छता अभियान प्रतियोगिता के अंतर्गत अपना परचम लहराते चले जा रहे हैं। इन तुलनात्मक अध्ययनों ने मतदाताओं को भाजपा के और अधिक नजदीक किया।

इस सबसे बढ़कर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जब "मोदी की गारंटी"  को अपना बोध वाक्य बनाया तो दिल्ली के मतदाताओं को चुनावी परिदृश्य के अंतिम सप्ताह में ही सही, अंततः यह भरोसा हो गया कि अब वाकई में दिल्ली का विकास चाहिए तो वहां डबल इंजन की सरकार को स्थापित करना ही दिल्ली के हित में है। क्योंकि दिल्ली समेत पूरे देश में एक बात तो स्थापित हो चुकी है कि श्री मोदी जो एक बार कह देते हैं वह करके अवश्य दिखाते हैं। यही कारण रहा कि अनेक भ्रामक प्रचारों के बाद भी जनता भ्रमित नहीं हुई और उसने भाजपा को स्पष्ट जनादेश देकर केंद्र के साथ साथ अब दिल्ली राज्य की सत्ता में भी स्थापित कर दिखाया। अतः यह स्पष्ट हो चला है कि वर्तमान और आने वाला युग भाजपा का है। देश का नागरिक यह समझ चुका है कि उसकी सुरक्षा, संस्कृति और सामाजिक सरोकार भाजपा के संरक्षण में ही संरक्षित बने रहने वाले हैं।

 

India Edge News Desk

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