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UCC: अँग्रेजों के “बांटों और राज करो” षड्यंत्र को तोड़कर भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के प्रयास, ‘कॉमन सिविल कोड’

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अंग्रेजों के जमाने के उन कानूनों को बदलने का अभियान चलाया हुआ है जो या अब अनुपयोगी हो गये हैं अथवा भारतीय समाज में विभेद पैदा करने वाले हैं। यूसीसी लागू होने के बाद भारत में सभी नागरिकों को समान सामाजिक अधिकार प्राप्त होगें।

रमेश शर्मा, सुसंस्कृत समाज और महिला अधिकार केलिये आवश्यक: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अंग्रेजों के जमाने के उन कानूनों को बदलने का अभियान चलाया हुआ है जो या अब अनुपयोगी हो गये हैं अथवा भारतीय समाज में विभेद पैदा करने वाले हैं। यूसीसी लागू होने के बाद भारत में सभी नागरिकों को समान सामाजिक अधिकार प्राप्त होगें। विशेषकर उन वर्ग समूहों में भी महिलाओं को सम्मान और विकास के समान अवसर मिलेगें जिनमें महिलाओं का शोषण की सीमा तक उपेक्षा होती है
मोदी सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को समाप्त करने का अभियान छेड़ा हुआ है । अंग्रेजी का के कोई दो सौ कानून ऐसे है॔ जो स्वतंत्रता सतहत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी लागू है॔। इनमें से एक सौ पैंतीस ऐसे कानूनों समाप्त कर दिया है जिनके उपयोग की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी । इसी अभियान के अंतर्गत अब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में यूसीसी लागू करने की घोषणा की है । इसकी शुरुआत उत्तराखंड से हो गई । यह कानून भारतीय सामाज जीवन के उस विसंगति को दूर करने वाला है जो अंग्रेजों ने भारतीय समाज में विभेद पैदा करने केलिये लागू किया था ।

यूसीसी यनि यूनीफॉर्म सिविल कोड अर्थात समान नागरिक संहिता ।

यह कानून अब देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देगा । विशेषकर उन महिलाओं के सम्मान और अधिकार की रक्षा होगी जिन परंपराओं पुरुष वर्चस्व का चलन है । कोई कल्पना कर सकता है किसी एक देश में, एक संविधान के अंतर्गत अलग अलग वर्गों में महिलाओं के लिये अलग अलग प्रावधान हों। कुछ समाज और परंपरा में महिलाओं को तलाक के साथ गुजारा भत्ता तक की गारंटी न हो और कुछ अपने पूरे अधिकार लेकर सम्मान जनक जीवन की राह बना सकें। विभेद से भरे यह कानून अंग्रेजी शासन में बने थे जो स्वतंत्रता की तीन चौथाई शताब्दी बीत जाने के बाद भी यथावत हैं। ऐसे कानून लागू करने के पीछे अंग्रेजों का अपना उद्देश्य था । वे भारतीय समाज में विभेद पैदा करना चाहते थे । हिन्दू और मुसलमानों के बीच अलगाव बनाये रखना चाहते थे । इसलिये उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के लिये अलग अलग कानून बनाये । एक केलिये मुस्लिम पर्सनल लाॅ और दूसरे केलिये हिन्दू कोड बिल बनाया। इन कानूनों में समानता नहीं थे । अंग्रेजों ने हिन्दुओं को सामाजिक और धार्मिक अधिकार कम दिये और मुसलमानों को थोड़ा अधिक थे । लेकिन यह विभेद सब स्थानों में लागू नहीं था केवल सामाजिक कानूनों में थे । दंड संहिता में नहीं और धार्मिक कानूनों में था ।अपराध नियंत्रण के लिये तो सबके लिये समान दंड संहिता लागू की ताकि सभी वर्गों और धर्मों के लोगों पर उनका वर्चस्व बना रहे । कुटिलता और दूरदर्शिता में अंग्रेजों का कोई मुकाबला नहीं था । अपनी राज सत्ता को मजबूत करने केलिये “फूट डालो और राज करो” उनका मुख्य सूत्र था । इसलिये दंड संहिता में समानता के साथ समाज नीति में फूट डालना उन्हे अपना हित लगा । इसका पूरा लाभ मुस्लिम समाज ने उठाया उन्होंने न केवल मुस्लिम पर्सनल लाॅ में अपने लिये पुरुष प्रधानता के कुछ विशेषाधिकार लिये अपितु लोकल असेम्बलियों के स्थानीय चुनाव में कुछ विशेषाधिकार भी लिये इससे उनका राजनैतिक वर्चस्व भी बना ।

विभेद से भरे सामाजिक कानून से जहाँ संपूर्ण भारतीय समिज समरस नहीं हो पाया

अपितु मुस्लिम समाज के पुरुषों को कुछ ऐसे अधिकारों को भी कानूनी मान्यता मिल गई जिससे महिलाओं पर मनोवैज्ञानिक दबाब बना रहा । जैसे पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकता था और कभी भी तीन बार तलाक तलाक कहकर सरलता से विवाह तोड़ सकता था। तब ऐसी तलाक शुदा महिला को पर्याप्त भर पोषण की गारंटी तक नहीं थी । यही सब मुस्लिम पर्सनल लाॅ में है । भारत में यह मुस्लिम पर्सनल लाॅ 1937 में ही अस्तित्व में आया था । इसी में तीन विवाह, तीन तलाक, हलाला, उत्तराधिकार आदि प्रावधान लागू किये गये ।इसे लागू कर ऐसा प्रचार किया गया मानों यह कोई धार्मिक अनिवार्यता है । धार्मिक अनिवार्यता सदैव धार्मिक कार्यों और परंपरा की होतीं हैं । सामाजिक नियम तो समाज की व्यवस्था और संचालन केलिये होते हैं जो देशकाल और परिस्थिति के चलते बदल जाते हैं। देश काल और परिस्थिति के बदल जाने से ही तो मुस्लिम समाज ने अपने पारंपरिक दंड विधान में बदलाव स्वीकार करके समान दंड संहिता स्वीकार कर ली थी । यह ठीक है कि मुस्लिम समाज में एक से अधिक विवाह और तलाक की परंपरा रही है । इसी का कानूनी स्वरूप स्वीकार किया गया । लेकिन बहु विवाह और विवाह विच्छेद की परंपरा तो हिन्दू समाज में भी रही है । पर हिन्दू कोड बिल में हिन्दुओं को बहु विवाह को क्यो सीमित किया । विवाह विच्छेद के नियम भी कठोर बनाये गये । इस प्रावधान से भी भारत में धर्मान्तरण को बल मिला । हरियाणा के एक राजनेता का उदाहरण है कि एक पत्नि के रहते हुये दूसरी शादी की सुविधा प्राप्त करने केलिये ही धर्मान्तरण कर लिया था ।

स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज चले गये, रियासतों भी समाप्त हो गई पर

यह विभेद सहित तमाम कानून यथावत रहे । अब वर्तमान सरकार ने इन्हें बदलकर संपूर्ण राष्ट्र को एक समरस स्वरूप देने का अभियान चलाया है । ऐसा भी नहीं ऐसा प्रयास पहली बार हो रहा है । राष्ट्र के समरस स्वरूप और समान आचार संहिता की बाद स्वतंत्रता के साथ समय समय पर उठती रही है लेकिन तत्कालीन सरकारों की राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव और तुष्टीकरण की मानसिकता के चलते यह लागू न हो सका । संविधान सभा में बाबा साहब अंबेडकर ने बहुत स्पष्ट शब्दों में अंग्रेज द्वारा लागू किये गये असमान कानूनों की विसंगतियों को स्पष्ट किया था । उनकी भावना के अनुरूप संविधान के अनुच्छेद-44 के अंतर्गत भारत के सभी नागरिकों पर एक समान अधिकार तो स्वीकार कर लिये गये । लेकिन एक अन्य प्रावधान में धार्मिक मान्यताओं के बहाने अलगाव बनाये रखने का मार्ग बना लिया गया । इसी के चलते कुछ पंथों में महिलाओं की दयनीय स्थिति बनी रही । इसे विडम्बना ही माना जायेगा कि स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ वर्गों में महिलाएँ अपने समानता के अधिकार से वंचित हैं। इनके साथ उन बच्चों के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है जिनके माता पिता के बीच तलाक हो जाता है । इस विसंगति पर अनेक बार संसद में विषय उठा और 1985 में शाहबानू गुजारा भत्ता प्रकरण में अपना फैसला देते हुये सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई थी कि समान नागरिक अधिकार देने वाला अनुच्छेद मृतप्राय रह गया है । इस प्रकार संविधान सभा, संसद और सुप्रीम कोर्ट में चर्चा होने के बाद भी समान नागरिक अधिकार संहिता लागू न हो सकी और अलगाव बना रहा । यह अलगाव तब भी न हट सका जब संविधान ने सेकुलर सिद्धांत स्वीकार कर लिया । कहने के लिये भारत का संविधान सेकुलर है किन्तु अलग अलग पंथ के नागरिकों केलिये अलग अलग अधिकार देने वाले कानून बने रहे । लेकिन इस बार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी दृढ़ता दिखा रहे हैं । उन्होंने स्पष्ट रूप से समान नागरिक आचार संहिता लागू करने की घोषणा की है । उनके संकल्प को पूरा करने केलिये उत्तराखंड सरकार ने पहल भी कर दी है । वहाँ यह लागू हो गया और अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राजस्थान, गुजरात आदि अनेक प्रांतों ने भी लागू करने की घोषणा कर दी है

वहीं कुछ राज्यों ने इसे लागू नहीं करने की घोषणा भी है ।

कौनसा राज्य लागू करेगा और कौनसा नहीं यह विषय तो भविष्य के गर्भ में पर भारत में एक राज्य गोवा ऐसा भी है जहां यूसीसी कानून स्वतंत्रता के पहले से लागू है। यह राज्य गोवा है। स्वतंत्रता से पहले गोवा में अंग्रेजों का नहीं पुर्तगालियों का शासन था । वहाँ सभी केलिये समान अधिकार वाला कानून लागू था । गोवा जब स्वतंत्र भारत का अंग बना तो गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा देकर यह नियम यथावत रहा । वहाँ सभी धर्मों के लोगों कलिये समान अधिकार हैं सब पर एक ही कानून लागू होता है । गोवा में कोई ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता, बिना पंजीयन के किसी भी विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है, पारिवारिक संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार प्राप्त हैं और न्यायालय के बिना तलाक को मान्यता नहीं। और माता पिता संपत्ति की संपत्ति पर बच्चों नैसर्गिक अधिकार प्राप्त है ।

अब यही प्रावधान पूरे देश में लागू होगा

मोदी सरकार संविधान अनुच्छेद 44 प्रभावी बना रही है जिससे हर धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्गों के लिए पूरे देश में एक ही नियम लागू होंगे । सभी धर्म समुदायों में विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे ।
अब नये प्रावधानों के अनुसार पत्‍नी की मौत के बाद पत्नि के अकेले माता-पिता की देखभाल का दायित्व भी पति का होगा । इस कानून के अंतर्गत अब मुस्लिम महिलाओं को भी बच्‍चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा और हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा । लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को पंजीयन कराना होगा ।

इस प्रावधान से यह विसंगति समाप्त होगी

जिसमें लिव इन में रहने वाले जोड़े झगड़ा होने पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा देतीं हैं। पति और पत्‍नी में परस्पर विवाद होने पर बच्‍चे की कस्‍टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को भी दी सकती है । इससे अनाथ होने पर परिवार में अभिभावक बनने की प्रक्रिया सरल हो जाएगी ।हालांकि वनवासी समाज, नगालैंड, मेघालय और मिजोरम जैसे प्रांतोंमें स्‍थानीय रीति रिवाजों को मान्यता रहेगी । कानूनी अधिकार समान होंगे ।इस तरह समान नागरिक आचार संहिता लागू होने से जहाँ सामाजिक अधिकार की असमानता दूर होगी वहीं सभी वर्ग की महिलाओं को सम्मान और विकास के समान अवसर मिलेंगे बच्चों के भविष्य की सुरक्षा होगी और लिव इन की विसंगतियाँ भी दूर होंगी और सबसे बड़ी बात भारत अंग्रेजों के जमाने में खींची गई विभेद की रेखा भी समाप्त होगी ।

India Edge News Desk

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