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मैत्रीबाग ​की रौनक लौटी

खुले केज में रुस्तम, राणा और बॉबी खूब मौज मस्ती कर रहे मैत्रीबाग ​की रौनक लौटी, अब पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी

 दुर्ग :  देश के सेंट्रल जोन में सफेद बाघ के सबसे छोटे शावक भारत और सोवियत रूस की मित्रता के प्रतीक हमारे भिलाई के मैत्रीबाग में हैं। यहां के चिड़ियाघर में सफेद बाघ सुल्तान और रक्षा से जन्में ये तीनों शावक स्तनपान एवं अन्य कारणों से साढ़े तीन महीनों से डार्क रूम में अपनी मां के साथ बंद थे। अब इन्हें खुले रूप से बड़े बाड़े में छोड़ दिया गया है।

तीनों शावकों में दो नर और एक मादा है। इनका जन्म 28 अप्रैल 2023 को हुआ था। मैत्री बाग चिड़ियाघर प्रबंधन ने तीनों शावकों के नाम रखने के लिए लोगों से भी सुझाव मांगा था। ढाई सौ से अधिक नाम लोगों ने सुझाए, जिसे ध्यान में रखते हुए इनका नाम रुस्तम, राणा और बॉबी रखा गया है। तीन व्हाइट टाइगर स्वस्थ हैं।

मैत्रीबाग के चिड़ियाघर में एक बार फिर से रौनक :

इनसे मैत्रीबाग के चिड़ियाघर में एक बार फिर से रौनक दिखाई देने लगी है। साथ ही इन नन्हे शावकों और उनकी मौज मस्ती को देखकर पर्यटक भी आनंदित हो रहे हैं। मैत्री बाग के प्रभारी डॉक्टर एनके जैन बताया कि सफेद शेरों के कुनबे में इजाफा हुआ है। वर्तमान में अब मैत्री बाग में कुल 9 सफेद बाघ हो गए हैं। पांच महीने के हो चुके इन शावकों को जन्म के बाद से आइसोलेट किया गया था। तब से इन्हें मां के दूध के साथ कैल्शियम की दवाएं दी जा रही थी। लेकिन अब ये रेड मीट खाने लगे हैं।

देश के 5 चिड़ियाघरों में बाघों का आदान- प्रदान :

मैत्री बाग चिड़ियाघर सफेद बाघों में सबसे अधिक वाला चिड़ियाघर हैं। मैत्री बाग प्रबंधन ने सेंट्रल जू अथॉरिटी के नियमानुसार, अब तक देश के 5 चिड़ियाघरों में बाघों का आदान- प्रदान कर चुकी है। मैत्रीबाग जू ने सफेद बाघ-बाघिन के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में सकारात्मक पहल कर देश में नाम कमाया है। देश में बेहद कम पाए जाने वाले वन्य प्राणियों में से एक सफेद बाघ के लिए अनुकूल माहौल देने के साथ ही बेहतर देखरेख से उनका कुनबा बढ़ाने में मदद की है।

बहुत संवेदनशील होते हैं ये बाघ :

मैत्रीबाग में सफेद बाघों की नियमित देखभाल करने वाले डॉ. एनके जैन बताते हैं कि व्हाइट टाइगर न्यूटैंट वेराइटी होने के कारण और भी ज्यादा संवेदनशील होते हैं। दूसरी पीढ़ी के बाद से ही इन ब्रीडिंग के दुष्परिणाम दिखने लगते हैं। इससे शारीरिक वृद्धि नहीं हो पाती। प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है। इसलिए इनका खास ख्याल रखना होता है। डाइट से लेकर हर चीज इनकी फिक्स रहती है। उसी के अनुसार बाघों की सेहत का अंदाजा भी लगाया जाता है।

ऐसे बढ़ता गया व्हाइट टाइगर का कुनबा :

1972 में मैत्रीबाग शुरू किया गया। ओडिशा भुवनेश्वर के नंदनकानन से पहली बार व्हाइट टाइगर का जोड़ा तरूण और तापसी यहां लाया गया। बेहतर ब्रीडिंग और देखभाल की वजह से कुनबा बढ़ता गया और चौथी पीढ़ी तक इनकी संख्या 26 पहुंच गई। तरूणा-तापसी से गंगा, कमला और सतपुड़ा पैदा हुए। इन ब्रीडिंग से आगे चलकर गंगा ने 10 और कमला से 5 शावक हुए। सोनम, सुल्तान, राम, श्याम, राधा, रघु, विशाखा, रंजन, रक्षा और आजाद दस शावक गंगा की संतान थी।

1. नवंबर 2013 में व्हाइट टाइगर गोपी को मैत्रीबाग से मध्यप्रदेश के टाइगर सफारी मुकुंदपुर रींवा भेजा गया था। दिसंबर 2020 में उसकी मौत हो गई। घटिया भोजन मृत पशु का मांस खिलाने से गंभीर बीमारी हो गई और खाना-पीना छोड़ दिया।

2. 29 नवंबर 2014 को इंदौर जू भेजे गए सफेद टाइगर रज्जन की 27 दिसंबर को मौत हो गई थी। केज में घुसकर कोबरा ने रज्जन को डस दिया था।

3. 22 जनवरी 2012 को सफेद बाघ सतपुड़ा और बाघिन गंगा को ईमू , मोर और तोते के बदले में बोकारो चिड़िया घर को दे दिया गया था। मात्र आठ महीने में 25 अगस्त 2012 को सतपुड़ा की मौत हो गई।

India Edge News Desk

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