परोपकार ही धर्म है तथा पर पीड़ा ही अधर्म है : मिलिंद परांडे
इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
रांची : भारतीय चिंतन समाज के कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी जीवन जीने का अधिकारी मानता है जबकि पश्चात चिंतन इसके विपरीत विचार रखता है। सर्व समावेशिता भारत की विशेषता रही है। यहां मानवता को कभी विभाजित नहीं किया जाता। भारतीय चिंतन के अलावा अन्य सभी चिंतन विभाजनकारी विचारों को बढ़ावा देते हैं। अंधेरा कभी प्रकाश का नाश नहीं कर सकता, दीपक का होना ही अंधेरा का हार है। सरला बिरला विश्वविद्यालय रांची के बी. के. बिरला प्रेक्षागृह में भारत के वर्तमान परिद्दश्य में युवाओं की भूमिका शीर्षक पर आयोजित संगोष्ठी में छात्रों एवं प्राधापकों के समक्ष बतौर मुख्य वक्ता विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री और समाजसेवी मिलिंद परांडे ने यह बात अपने व्याख्यान में कही। भारत के विश्वगुरु की परिकल्पना की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व के वैचारिक संकट का निवारण और उसका उचित समाधान भारतीय जीवन मूल्यों एवं चिंतन में निहित है, इसके लिए भारत को ही आगे आना होगा। भारतीय चिंतन सर्वे भवंतु सुखिन: एवं वसुधैव कुटुंबकम के विचारों से ओतप्रोत है।
धर्म के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म का अर्थ रिलीजन शब्द नहीं है। धर्म उपासना से परे है। परोपकार ही धर्म है तथा पर पीड़ा ही अधर्म है। उपासना, जीवन मूल्य एवं कर्तव्य भाव धर्म के अंग हैं। उन्होंने युवाओं को भारतीय गौरव से परिचित कराते हुए कहा कि आज के 400 साल पूर्व भारत विश्व का सबसे बड़ा आर्थिक पावर था।विभिन्न आक्रमणकारियों ने यहां की अर्थव्यवस्था पर आक्रमण कर इसे कमजोर करने का कार्य किया। भारत का तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय हुआ करते थे। मुगलों एवं अंग्रेजों के कारण भारत में कई सामाजिक दोष उत्पन्न हुए। भारत की जाति एवं जनजाति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि रामायण में सामाजिक एकीकरण और जनजातीय समाज के सम्मान के कई द्दष्टांत उदाहरण के रूप में देखने को मिलते हैं।
पाश्चात्य विचार के अनुसार विश्व एक बाजार है जबकि भारतीय चिंतन के अनुसार विश्व एक वृहद परिवार है।युवाओं से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि हमे अपनी युवा शक्ति का उपयोग राष्ट्र निर्माण में करने की आवश्यकता है। हमें मिलकर राष्ट्र के उत्थान की जवाबदेही अपने कंधों पर लेना होगा। देश को सशक्त, समृद्ध व अखंड बनाए रखना युवाओं की जवाबदेही है। संगोष्ठी में अपने स्वागत उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर गोपाल पाठक ने कहा कि हम सभी अभिभूत हैं कि विश्वविद्यालय परिसर में सामाजिक व राष्ट्रीय चेतना जागृत करने वाले संत का आगमन हुआ है। रामचरितमानस की चौपाई के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि बिनु हरि कृपा मिलही नहीं संता। उन्होंने कहा कि युवा शक्ति राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होती है। भारत सौभाग्यशाली है जिसकी सबसे सबसे बड़ी आबादी युवा आबादी है। उन्होंने जापान की समृद्धि का उदाहरण देते हुए कहा कि जापान की संपन्नता का सबसे बड़ी ताकत वहां की युवा शक्ति ही है।
(जी.एन.एस)